Old Soldiers To Save Existence In Punjab, Sad Ready To Contest Elections Alone For First Time Since 1996 – Amar Ujala Hindi News Live

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old soldiers to save existence in Punjab, SAD ready to contest elections alone for first time since 1996

सुखबीर बादल
– फोटो : फाइल

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शिरोमणि अकाली दल (शिअद) 1996 के बाद पहली बार पंजाब में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। बेअदबी, कृषि कानूनों, एमएसपी की गारंटी और प्रदेश के अन्य ज्वलंत मुद्दों के बीच शिअद ने पार्टी के पुराने चेहरों पर भरोसा जताते हुए इस बार दांव खेला है। पुराने चेहरों पर दांव खेलने के पीछे का कारण शिअद अपने वजूद को बचाने और पार्टी का गठन जिन सिद्धांतों के खातिर हुआ था, अब उस राह पर दोबारा चलने का प्रयास कर रही है।

शिअद को प्रदेश में बीते विधानसभा चुनावों में बेअदबी, पंथक मुद्दों बंदी सिंहों की रिहाई जैसे अन्य कई मुद्दों पर प्रदेश की जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव से पहले शिअद प्रमुख सुखबीर बादल ने अमृतसर में बेअदबी के मुद्दे पर कहा था कि कहीं न कहीं प्रदेश में उस समय उनकी सरकार रहते हुए उनसे भी गलतियां हुई हैं, और उन्होंने सार्वजनिक तौर पर इसके लिए माफी तक मांगी थी।

मजबूत चेहरे खोजने में करनी पड़ रही जद्दोजहद

एक बड़ा कारण यह भी नजर आ रहा अन्य राजनीतिक दलों की भांति शिअद को भी चुनावी चेहरे खोजने में जद्दोजहद का सामना करना पड़ा है। पार्टी ने शनिवार को सात सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा की। इनमें कई नेता जैसे एनके शर्मा पहली बार संसदीय चुनाव लड़ेंगे, तो पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा तीसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं, हालांकि बीते लोकसभा चुनाव में प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा को श्री आनंदपुर साहिब सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी मनीष तिवारी से हार का सामना करना पड़ा था, फिर भी पार्टी ने इस सीट से कोई और मजबूत चेहरा न होने के कारण प्रो. चंदूमाजरा पर फिर से भरोसा जताया है।

वहीं, पंजाब की हॉट सीट पटियाला की अगर बात करें तो शिअद ने पार्टी के पूर्व विधायक एनके शर्मा को पहली बार संसदीय चुनाव के लिए इस सीट से उतारा है। उनकी सीधी टक्कर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर, धर्मवीर गांधी, बलबीर सिंह से होगी। बता दें वर्ष 2020 में कृषि कानूनों की मांग पर किसानों के आंदोलन के बीच शिअद ने भाजपा से वर्षों पुराना अपना गठबंधन तोड़ दिया था। हालांकि, इस गठबंधन के पुन: गठजाेड़ होने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन एमएसपी गारंटी को लेकर किसानों के एक बार फिर दिल्ली कूच के फैसले के बीच यह राजनीतिक फेरबदल फिर अधर में रह गया।



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