कुरुक्षेत्र: पांचवें पड़ाव पर आया चुनाव, दोनों खेमों के अपने अपने दांव
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लोकसभा चुनावों के नतीजे चार जून को आएंगे, लेकिन अपने अपने अंदाज से उनकी आहट भांप कर एनडीए और इंडिया खेमों ने अपने अगले दांव की तैयारियां शुरु कर दी हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए समूह को उम्मीद है कि उसे सरकार बनाने लायक बहुमत आसानी से मिल जाएगा। उसकी लड़ाई सिर्फ अपनी सीटें बढ़ाने की है जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्षी इंडिया खेमे को लगता है कि जिस तरह चुनावों में स्थानीय और सामाजिक समीकरण हावी हो रहे हैं उससे एनडीए बहुमत के आंकड़े से दूर रह जाएगा और तब इंडिया गठबंधन अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाने का दावा कर सकता है। एनडीए और इंडिया से बाहर के दलों ने भी तमाम चुनावी संभावनाओं का आकलन करते हुए अपनी पैंतरेबाजी शुरु कर दी है।
लोकसभा चुनाव शुरु होने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए चार सौ पार का नारा गढ़ दिया था। एक तरह से कहा जा सकता है कि उन्होंने भाजपा और एनडीए के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों का लक्ष्य तय कर दिया था, लेकिन इसके पीछे रणनीति यह थी कि पूरा सार्वजनिक विमर्श ही इस बात पर हो जाए कि भाजपा और एनडीए को कुल कितनी सीटें आएंगी चार सौ या पौने चार सौ या साढ़े तीन सौ या तीन सौ से कुछ ज्यादा। यानी बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़े 272 की बात ही बंद हो जाए और यह मान लिया जाए कि यह आंकड़ा तो भाजपा और एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रिय छवि, राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, सफल जी-20 आयोजन से बनी विश्वगुरु की छवि और विकसित भारत के नारे के सहारे चुनाव से पहले ही पार कर चुके हैं। अब मोदी की गारंटी भाजपा को 370 और एनडीए को चार सौ पार पहुंचा देगी। मोदी और भाजपा की यह रणनीति कामयाब भी हुई और जब चुनाव शुरु हुआ तो सार्वजनिक चर्चा में इसी विमर्श का बोलबाला था। मीडिया से लेकर चौराहों और घरों तक में यही चर्चा होती थी कि भाजपा और एनडीए की कितनी सीटें लोकसभा में आएंगी तीन सौ, सवा तीन सौ साढ़े तीन सौ या पौने चार सौ या चार सौ पार। लेकिन जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ा और पहले दूसरे तीसरे दौर के मतदान संपन्न हुए विमर्श में बदलाव आ गया। हालांकि अब भी भाजपा एनडीए के तीन सौ और उससे ज्यादा की चर्चा बंद नहीं हुई लेकिन उसके समानांतर यह चर्चा तेज होने लगी कि क्या भाजपा और एनडीए बहुमत का आंकड़ा 272 तक पहुंच पाएंगे या 240-250 तक आकर रुक जाएगी या दौ सौ से कुछ ज्यादा आते आते गाड़ी फंस जाएगी। यानी भाजपा के 370 और चार सौ पार के मुकाबले विपक्ष का विमर्श कि भाजपा और एनडीए को बहुमत मिलना मुश्किल है भी जोर पकड़ गया। और इस विमर्श ने विपक्ष के नेताओं को यह हौसला दे दिया कि राहुल गांधी ने भाजपा के लिए 150, अखिलेश यादव ने 143, अरविंद केजरीवाल ने 230, ममता बनर्जी ने 240 जैसे आंकड़े देने शुरु कर दिए। यानी चुनाव के अगले चरण भाजपा और विपक्ष के विमर्श के बीच मुकाबले में बदल गए।
चुनाव के माहौल में यह तब्दीली इस बात का साफ संकेत है कि भले ही मुख्यधारा की मीडिया में वह तस्वीर नहीं आ रही है जो जमीन पर होने वाली हलचल से बनती जा रही है। लेकिन राजनीतिक दल इसे बखूबी समझ रहे हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा के फायर ब्रांड प्रचारक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भाषणों में आक्रामकता बढ़ गई है और भाजपा इस चुनाव के शेष चरणों में हिंदुत्व को केंद्रीय मुद्दा बनाने में जुट गई है। मुसलमान पाकिस्तान से लेकर राम मंदिर के मुद्दे भाजपा नेताओं के चुनावी भाषणों में हावी हैं। प्रधानमंत्री मोदी लगभग हर सभा में कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी तो राम मंदिर पर बाबरी ताला लग जाएगा। अब इससे भी आगे उन्होंने कहना शुरु कर दिया है कि कांग्रेस सरकार बनने पर राम मंदिर पर बुलडोजर चल जाएगा। कोशिश राम मंदिर को एक बार फिर चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बनाकर हिंदू मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की है।
दूसरी तरफ विपक्षी इंडिया समूह के नेता भी इसे भांप कर अब ज्यादा आक्रामक तरीके से अपने मुद्दों को उठा रहे हैं। भाजपा के राम मंदिर के जवाब में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने संविधान बचाने को केंद्रीय मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश की है।राहुल गांधी मल्लिकार्जुन खरगे और प्रियंका गांधी ही नहीं बल्कि अखिलेश यादव, उद्दधव ठाकरे, शरद पवार और तेजस्वी यादव भी भाजपा पर चार सौ सीटें जीतकर मौजूदा संविधान को खत्म करने का आरोप लगाते हुए उसे बचाने का नारा लगा रहे हैं।कहा जा रहा है कि संविधान खत्म होने का मतलब लोगों की स्वतंत्रता, दलितों पिछड़ों आदिवासियों और वंचितों को आरक्षण व समानता समेत अन्य अधिकारों का खत्म हो जाना है। राहुल गांधी तो हर सभा में अपने हाथ में संविधान की प्रति लेकर लोगों को यही समझाते हैं। चुनावी सभाओं में इस मुद्दे पर दिखने वाले जोश से हौसला पाए विपक्षी नेताओं में अब अपनी सीटें बताने की बजाय भाजपा की सीटें घटा कर बताने की होड़ है।
इस बीच इस चुनाव में भाजपा के पक्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सुस्ती भी चर्चा का विषय है।आमतौर पर जिस तरह संघ के स्वयंसेवक चुनाव में भाजपा के प्रचार के लिए गांव गांव नगर नगर डगर डगर और घर घर जाकर लोगों में हिंदुत्व राष्ट्रवाद के लिए वोट मांगते थे, इस बार वैसा नहीं दिख रहा है। इससे यह समझा जा रहा है कि संघ ने चुनाव का पूरा दारोमदार भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी व अन्य नेताओं पर छोड़ दिया है। इसी बीच एक अखबार को दिए गए साक्षात्कार में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह कहकर कि भाजपा अब इतनी बड़ी हो गई है कि उसे संघ पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं रह गई है, संघ भाजपा के ऱिश्तों को एक नया मोड़ दे दिया है। भाजपा अध्यक्ष के इस कथन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति होगी ऐसा माना जा रहा है, क्योंकि नड्डा जिस तरह से मोदी के प्रति वफादार हैं उससे जाहिर है कि इतना अहम बयान उन्होंने ड़ दो मायने हैं। पहला यह कि नड्डा ने संघ को यह संदेश दे दिया है कि भाजपा अब अपने फैसले लेने और अपनी लड़ाई लड़ने में खुद सक्षम है और दूसरा यह कि चुनाव के बाद अगर अपेक्षित नतीजे नहीं आते हैं और भाजपा को सरकार बनाने के लिए किसी जोड़ तोड़ की जरूरत पड़ती है तो संघ भाजपा पर किसी तरह का वैचारिक और नैतिक दबाव न डाले। क्योंकि एक आम चर्चा है कि अगर भाजपा बहुमत से कुछ कम रह गई तो संघ प्रधानमंत्री पद के लिए कोई और नाम आगे कर सकता है। नड्डा का बयान संघ के किसी भी ऐसे संभावित कदम को रोकने की एक रणनीति के तहत दिया माना जा सकता है।
उधर विपक्षी गठबंधन में भी इसकी सुगबुगाहट शुरु हो गई है कि अगर सरकार बनाने की स्थिति आई तो इंडिया समूह की तरफ से प्रधानमंत्री कौन होगा। रायबरेली के चुनाव प्रचार में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने इस सुगबुगाहट को यह कहकर बढ़ा दिया कि रायबरेली के लोग राहुल गांधी को वोट देकर एमपी नहीं पीएम चुन रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के किसी भी दूसरे नेता ने बघेल के इस बयान को आगे नहीं बढ़ाया और न ही इंडिया गठबंधन के किसी दूसरे नेता ने इस पर कोई प्रतिक्रिया दी। प.बंगाल में कांग्रेस और वाममोर्चे के खिलाफ चुनाव लड़ रहीं ममता बनर्जी ने पहले इंडिया गठबंधन की सरकार को बाहर से समर्थन देने की बात कही लेकिन अगले ही दिन उन्होंने अपना बयान बदलते हुए कहा कि उनकी लड़ाई बंगाल के कांग्रेस और माकपा नेताओं से है लेकिन वह राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं और उन्होंने इसके गठन में अहम भूमिका निभाई है। इसलिए सरकार बनने पर वह उसमें पूरा साथ देंगी।ममता का यह रुख भी विपक्षी गठबंधन में चुनाव बाद बनने वाले संभावित समीकरणों को लेकर तैयारी का संकेत है। बाजी किसके हाथ लगेगी इसका पता चार जून को नतीजे आने पर ही लगेगा।