दिलरोज हत्याकांड में दोषी महिला को फांसी
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लुधियाना के शिमलापुरी इलाके से ढाई साल की बच्ची दिलरोज को घर से अगवा कर उसे जिंदा दफनाकर मौत के घाट उतारने के मामले में तीन साल बाद जिला सेशन जज ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सेशन जज मुनीष सिंघल की अदालत ने आरोपी महिला नीलम को दोषी करार देने के बाद हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई।
इसके बाद अदालत के बाहर इस केस के फैसले का इंतजार कर रहे दिलरोज के पारिवारिक सदस्यों की आंखों से आंसू झलके और वह खूब रोए। अदालत की तरफ से अपहरण के मामले में दोषी महिला को उम्रकैद, सबूतों से छेड़छाड़ करने के मामले में पांच साल और हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई है। दोषी महिला नीलम के वकील ने कोर्ट से कहा था कि नीलम के बच्चे छोटे हैं और उसके साथ कुछ दया की जाए। मगर अदालत ने उनकी दलील को नहीं माना और उसे फांसी की सजा सुनाई।
शिमलापुरी इलाके में रहने वाले पुलिस मुलाजिम हरप्रीत सिंह की ढाई साल की बच्ची दिलरोज घर के बाहर खेल रही थी तो पड़ोस में रहने वाली आरोपी महिला नीलम उसे चॉकलेट दिलाने का झांसा दे अपने साथ ले गई और उसे मारपीट कर घायल कर दिया। उसने सलेम टाबरी इलाके में सुनसान इलाके में गड्ढा खोदकर उसे जिंदा दफना दिया। घायलावस्था में बच्ची तड़प रही थी तो आरोपी महिला ने जिंदा बच्ची पर ही मिट्टी डाल उसे दफना दिया। इसके बाद वह घर आ गई। बच्ची के गायब होने के बाद हरप्रीत सिंह और उसके पारिवारिक सदस्य उसे ढूंढने लगे तो आरोपी महिला भी ड्रामा करते हुए उनके साथ बच्ची को ढूंढती रही।
जब सीसीटीवी कैमरे की फुटेज पुलिस ने चेक की तो सारी कहानी खुलकर सामने आ गई। इस मामले में जांच करने वाले एएसआई गुरबक्शीश सिंह ने जांच को आगे बढ़ाया और आरोपी महिला की निशानदेही पर बच्ची का शव बरामद कर लिया।
न्यायपालिका पर था पूरा भरोसा
दिलरोज के पिता हरप्रीत सिंह ने कहा कि वह खुद पुलिस मुलाजिम हैं और उन्हें कानून पर पूरा भरोसा था। लुधियाना पुलिस ने इस मामले में उनका पूरा साथ दिया। उन्होंने कहा वह रोजाना कहते हैं बेटी जहां भी हो वापस आ जाओ। वह बेटी के बिना कैसे रह रहे हैं उन्हें ही पता है। हर दिन काफी मुश्किल से कटता है। न्यायाधीश मुनीष सिंघल का कैसे धन्यवाद करें उनके पास कोई शब्द ही नहीं हैं। एडवोकेट परोपकार सिंह घुम्मण उनके लिए भगवान बनकर आए और उन्हें इंसाफ दिलाने में पूरी जान तक लगा दी। दिलरोज के पिता ने कहा कि आज एक बार फिर पूरे देश के लोगों का भरोसा न्यायपालिका पर कायम हुआ है। अदालत का फैसला आते ही एडवोकेट परोपकार सिंह घुम्मण जब बाहर आए तो दिलरोज के माता-पिता काफी रो रहे थे। इस दौरान एडवोकेट घुम्मण की आंखों से भी आंसू झलक गए। परोपकार सिंह ने कहा कि आज का कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है।
दोषी महिला नीलम ने चंगेजखान जैसे दी बच्ची को सजा, अब खुद रो रही
इस केस की अगवाई करने वाले सीनियर एडवोकेट परोपकार सिंह घुम्मण ने बताया कि पांच सौ साल पहले जब चंगेजखान का राज था तो उस समय बच्चों को जिंदा दफनाया जाता था और उन्हें व परिवारों को सजा दी जाती थी, लेकिन दिलरोज के मामले में नीलम ने चंगेजखान से कम काम नहीं किया। इस केस में काफी मेहनत की गई और लोगों की दुआओं से परिवार को इंसाफ मिला। उन्होंने कहा कि दूसरे की बच्ची की निर्मम हत्या करने वाली हत्यारिन आज खुद के बच्चों के लिए दया की भीख मांग रही है, जिसे अदालत ने मंजूर नहीं किया।
दो घंटे देरी से अदालत में पेश की गई दोषी महिला नीलम
इस केस में अदालत ने शुक्रवार को नीलम को दोषी करार दिया था। इसके बाद इस पर विचार किया जा रहा था कि किस धारा में क्या सजा दी जाए। अदालत ने सोमवार फिर मंगलवार और उसके बाद वीरवार की सुबह दस बजे दोषी महिला नीलम को सजा सुनाए जाने की बात कही। जेल अथारिटी की तरफ से दोषी महिला को दो घंटे देरी से पेश किया गया। 12 बजे जब आरोपी महिला आई तो अदालत ने फैसला पढ़ना शुरू कर दिया। अदालत में दोषी महिला के वकील ने दलील दी कि उसके पिता की मौत हो चुकी है और नीलम के दो बच्चे हैं, जिनकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं है। लिहाजा उसके लिए दया की जाए। मगर अदालत ने साफ तौर पर कह दिया कि यह एक जघन्य अपराध है इसमें कोई दया नहीं दी जा सकती। अदालत ने उसे सजा सुनाई और वह एक बार तो घबरा गई। घबराई हालत में ही पुलिस उसे अपने साथ ले गई।