जंगल (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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उत्तराखंड के वन क्षेत्रों से बाहर निकल कर लोगों और पशुओं का शिकार बनाने वाले खूंखार वन्यजीवों के होश ठिकाने लगाने का वन विभाग ने इंतजाम कर दिया है। वन्यजीवों के हमलों से निपटने के लिए वन विभाग ने करोड़ों रुपये के ट्रैंक्यूलाइज गन, सैकड़ों कैमरा ट्रैप और पिंजरे से लेकर दूसरे उपकरण खरीदे हैं।
वन विभाग का मानना है कि इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में मदद मिलेगी। उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक बड़ी चुनाैती है। प्रदेश में तराई पूर्वी वन प्रभाग, गढ़वाल वन प्रभाग, नैनीताल, पिथाैरागढ़ वन प्रभाग जैसे डिवीजन मानव-वन्यजीव संघर्ष के मद्देनजर बेहद संवेदनशील बने हैं।
पिछले साल भीमताल जैसे इलाके में बाघिन के हमले से कई लोगों की माैत हुई थी। अब वन विभाग का दावा है कि प्रभागवार और वन्यजीवों के हिसाब से हाट स्पॉट चिह्नित कर खतरों से निपटने की योजना बनाई गई है। इसके अलावा प्रभागों को रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए संसाधनों से लैस करने का फैसला किया है।
रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए खरीदे सामान
प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव समीर सिन्हा कहते हैं कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए प्रभागों को सात करोड़ पचास लाख की राशि दी गई थी। इससे बाघ को पकड़ने के लिए 12 और तेंदुए के लिए 116 पिंजरे लिए गए हैं। इसके अलावा वन्यजीव को बेहोश करने के लिए छह ट्रैंक्यूलाइज गन खरीदी गई है। इसके अलावा 650 कैमरा ट्रैप, 122 एनाइडर, 125 सर्च लाइट और 350 मेडिकल किट को खरीदा गया है। इससे रेस्क्यू आपरेशन चलाने में सहूलियत होगी।