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विनय बहुगुणा, संवाद न्यूज एजेंसी, रुद्रप्रयाग
Published by: रेनू सकलानी
Updated Wed, 11 Sep 2024 07:37 AM IST
पहाड़ों पर सितंबर के महीने भूस्खलन की बड़ी घटनाएंहो चुकी हैं। वर्ष 2012 में ऊखीमठ के तीन गांवों में भूस्खलन से 64 लोगों की मौत हुई थी।
प्रतीकात्मक तस्वीर – फोटो : संवाद
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पहाड़ी क्षेत्रों में सितंबर का महीना भी सुरक्षित नहीं है। इस दौरान अचानक तेज बारिश और चटक धूप से भूस्खलन का खतरा अधिक रहता है। बीते वर्षों में सितंबर में आपदा की बड़ी-बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें भारी जानमाल का नुकसान हो चुका है।
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यूं तो समूचा उत्तराखंड प्राकृतिक आपदा की दृष्टि से जोन चार व जोन पांच में शामिल है। यहां, भूकंप, भूस्खलन, भू-धंसाव, अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाओं का लंबा इतिहास है। इन घटनाओं ने कई गांवों का भूगोल बदलकर रख दिया है। प्राकृतिक आपदा की घटनाएं ज्यादातर जून, जुलाई और अगस्त में बारिश के मौसम में हुई हैं।
जून 2013 की केदारनाथ आपदा का प्रमुख कारण 36 घंटे की लगातार बारिश को माना जाता है।इस वर्ष नई टिहरी, चमोली सहित कुमाऊं क्षेत्र में बरसात के मौसम में जुलाई-अगस्त में काफी नुकसान हो चुका है पर पहाड़ में सितंबर का महीना भी आपदा की दृष्टि से सुरक्षित नहीं है। 13/14 सितंबर 2012 को बादल फटने से ऊखीमठ के चुन्नी, मंगोली और ब्राह्मणगांव का भूगोल ही बदलकर रख दिया था। तब, इन गांवों में मलबे के सैलाब ने 64 लोगों को काल का ग्रास बना दिया था।