{“_id”:”67b6269c416ed7e5a00e6ef5″,”slug”:”uttarakhand-land-law-has-undergone-many-changes-in-23-years-know-what-history-2025-02-20″,”type”:”feature-story”,”status”:”publish”,”title_hn”:”Uttarakhand Land Law: 23 साल में कई बदलावों से गुजरता रहा उत्तराखंड का भू-कानून, जानें कैसा रहा इतिहास”,”category”:{“title”:”City & states”,”title_hn”:”शहर और राज्य”,”slug”:”city-and-states”}}
भू-कानून – फोटो : अमर उजाला
विस्तार
उत्तराखंड राज्य गठन के दो साल बाद बना भू-कानून 23 साल में कई बदलावों से गुजर चुका है। जिस एनडी तिवारी सरकार ने 2002 में भू-कानून बनाया था, उसने ही 2004 में इसे सख्त करते हुए संशोधन किया था। कानून में सबसे ज्यादा छूट 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने बढ़ाई थी।
Trending Videos
उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में यूपी का ही कानून चल रहा था, जिसके तहत उत्तराखंड में जमीन खरीद को लेकर कोई पाबंदियां नहीं थीं। वर्ष 2003 में एनडी तिवारी की सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 (अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001) अधिनियम की धारा-154 में संशोधन कर बाहरी लोगों के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर भूमि खरीद का प्रतिबंध लगाया।
साथ ही कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया था। 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था। चिकित्सा, स्वास्थ्य, औद्योगिक उपयोग के लिए भूमि खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य किया गया था। तिवारी सरकार ने यह प्रतिबंध भी लगाया था कि जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा करना होगा। बाद में परियोजना समय से पूरी न होने पर कारण बताने पर विस्तार दिया गया।