
सियाराम बाबा
– फोटो : amar ujala
विस्तार
निमाड़ के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा ने बुधवार सुबह छह बजे देह त्याग दी। बाबा के अनुयायी निमाड़ और आदिवासी अंचल में बड़ी संख्या में हैं। उनकी उम्र को लेकर अलग-अलग कयास लगाए जाते रहे हैं। कोई उनकी उम्र 100 साल बताता है तो कोई 115 साल, लेकिन भट्यान गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1955 में बाबा भट्यान गांव आए थे। तब वे युवा थे और उनकी उम्र 25 से 30 साल रही होगी। 69 साल से वे गांव में रहे, वे गांव छोड़कर कहीं नहीं जाते थे।
संभवत: बाबा दूसरे संतों के साथ नर्मदा परिक्रमा के लिए आए थे और नर्मदा किनारे का यह गांव उन्हें पसंद आ गया। फिर उन्होंने यहां एक कुटिया बनाकर रहने का निश्चय किया। उनके लिए पांच घरों से खाना आता था, जिसे वे एक पात्र में मिलाकर चूरकर खाते थे। उनकी दिनचर्या में सुबह उठकर भगवान का राम नाम जपना और नर्मदा नदी में स्नान करना शामिल था। दिनभर वे आश्रम में रामचरित मानस पढ़ते थे और शाम को भक्तों के साथ भजन गाते थे। बाबा ने वर्षों तक मौन धारण किया था और एक पैर पर खड़े होकर तपस्या भी की थी।
मराठी जानते थे सियाराम बाबा
उनके अनुयायी बताते हैं कि बाबा का जन्म महाराष्ट्र में मुंबई के आसपास के किसी ग्रामीण क्षेत्र में हुआ था। उन्हें मराठी भाषा अच्छी तरह आती थी। इसके अलावा वे संस्कृत भाषा भी जानते थे। बाबा ने गांव में राम मंदिर का निर्माण कराया था और फिर नदी किनारे एक आश्रम बनाया। बीते 20 साल में सियाराम बाबा के भक्तों की संख्या काफी बढ़ गई थी। हर शनिवार और रविवार को आश्रम में हजारों भक्तों की भीड़ लगती थी। त्यौहार के समय बाबा के आश्रम में भंडारा भी होता था।
सिर्फ 10 रुपये लेते थे बाबा सियाराम
सियाराम बाबा ने 12 साल तक मौन भी धारण कर रखा था। जो भक्त आश्रम में उनसे मिलने आता है और ज्यादा दान देना चाहता थे तो वे इनकार कर देते थे। वे सिर्फ दस रुपये का नोट ही लेते थे। उस धनराशि का उपयोग भी वे आश्रम से जुड़े कामों में लगा देते थे। बाबा ने नर्मदा नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे तपस्या की थी और बारह वर्षों तक मौन रहकर अपनी साधना पूरी की थी। मौन व्रत तोड़ने के बाद उन्होंने पहला शब्द सियाराम कहा तो भक्त उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे। हर माह हजारों भक्त उनके आश्रम में आते है।