पिता के कैमरे से पहली फिल्म शूट की…फिर सिनेमा का अद्भुत संसार रचते गए
श्याम बेनेगल ने 12 साल की उम्र में अपने फोटोग्राफर पिता श्रीधर बी. बेनेगल के कैमरे से पहली फिल्म शूट की थी। हिंदी सिनेमा में उनकी पहली फिल्म अंकुर थी। उन्होंने शबाना आजमी व स्मिता पाटिल के साथ कई यादगार फिल्में बनाईं। भारतीय फिल्मों के महान निर्देशक सत्यजीत रे उनकी प्रतिभा के कायल थे।
आम लोगों की जिंदगी और चेहरे को पर्दे पर कविता की तरह रचा
इस दिग्गज निर्देशक और पटकथा लेखक ने अंकुर, निशांत, मंथन, भूमिका, जुनून, मंडी जैसी फिल्मों से समाज को आईना दिखाते रहे। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शुमार- पद्मश्री, पद्म भूषण के अलावा भारतीय सिनेमा का शीर्ष पुरस्कार दादा साहब फाल्के से सम्मानित बेनेगल ने जुबैदा, द मेकिंग ऑफ द महात्मा, नेताजी सुभाष चंद्र बोसः द फॉरगॉटेन हीरो, आरोहन, वेलकम टु सज्जनपुर जैसी फिल्में रचीं। फिल्मी दिग्गजों ने तो यहां तक कहा कि बेनेगल ने आम लोगों की जिंदगी और आम लोगों के चेहरे को पर्दे पर कविता की तरह रचा। उन्होंने कुल 24 फिल्में, 45 वृत्तचित्र और 1,500 एड फिल्में बनाईं।
2018 में वी. शांताराम लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार
उनकी फिल्में प्रासंगिक सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर आधारित थी। जुनून (1979) देश के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान की उथल-पुथल भरी कहानी है। यह फिल्म एक ब्रिटिश महिला (नफीसा अली) और एक भावुक पठान (शशि कपूर) के बीच निषिद्ध प्रेम कहानी को दर्शाती है। इसे इसके दृश्यों और भावनात्मक तीव्रता के लिए सराहा जाता है। धर्मवीर भारती के उपन्यास पर आधारित सूरज का सातवां घोड़ा (1992) से अनूठी कहानी पेश की। एक कुंवारा (रंजीत कपूर) तीन अलग-अलग सामाजिक तबके की महिलाओं की कहानियां सुनाता है, जिन्होंने उसके जीवन को प्रभावित किया। प्रत्येक पात्र अलग था और समाज के विविध ताने-बाने का प्रतीक था। समानांतर सिनेमा आंदोलन के अग्रणी के रूप में पहचाने जाने वाले बेनेगल को 2018 में वी. शांताराम लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
राजनीतिक दबावों के खिलाफ वेश्यालय के संघर्ष
मराठी अभिनेत्री हंसा वाडकर के संस्मरणों से प्रेरित उनकी फिल्म भूमिका ने व्यक्तिगत पहचान, नारीवाद और रिश्तों के टकराव के विषयों पर गहराई से चर्चा की। मंडी (1983) वेश्यावृत्ति और राजनीति पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी पेश करती है, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक दबावों के खिलाफ वेश्यालय के संघर्ष को दर्शाया गया है। इस फिल्म को मील का पत्थर माना जाता है। कलयुग महाभारत से प्रेरित फिल्म है। इसमें एक परिवार के बीच कारोबार को लेकर होने वाली दुश्मनी को दिखाया गया है।