राजू
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दशकों पहले अपने परिवार से बिछड़े राजू के दिमाग में एक कहानी है। कई बरसों तक उसके साथ हुई ज्यादती से यह कहानी भी धुंधली पड़ गई है। हाथ में किसी ट्रक ड्राइवर की लिखी चिट्ठी और जेब में हनुमान की तस्वीर है। राजू उसका असल नाम है भी या नहीं, ये भी उसे नहीं पता। धुंधली हो चुकी इस कहानी को लेकर वह शहर-शहर में अपने परिवार को खोज रहा है।
पांच माह पहले अमर उजाला में छपी खबर के आधार पर देहरादून पुलिस ने उसे एक परिवार से मिलाया। लेकिन, शायद ये परिवार भी उसे अपना नहीं लगा और फिर गाजियाबाद तक पहुंच गया। यहां एक परिवार ने उसे गले लगाया, तो अब पुलिस का चक्कर पड़ गया।
वहां पर उससे भेड़-बकरी चराने का काम किया जाता था। लोग उसकी पिटाई करते थे। इससे पहले वह पुलिस के पास भी गया था। अमर उजाला में प्रकाशित खबर को देखकर दून का एक परिवार पुलिस के पास पहुंचा और परिवार ने राजू को अपना बेटा मोनू बताया। राजू ने भी अपनी मां को पहचानने का दावा किया। इसके बाद वह यहां अपने कथित परिवार के साथ रहने लगा।