मारवाड़ी नस्ल के घोड़े की खासियत।
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जालोर (राजस्थान) राजस्थान का जालोर जिला, जो अपनी ऐतिहासिक विरासत और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की शान को आज भी संजोए हुए है। यह घोड़े अपनी खूबसूरती, ताकत और स्वामीभक्ति के लिए दुनिया भर में विख्यात हैं। मारवाड़ी नस्ल के घोड़े न केवल राजस्थान, बल्कि देश-विदेश में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं।
मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की कई विशेषताएं हैं। महंत अमृतनाथ जी महाराज, जो जालोर के निम्बावास में मारवाड़ी घोड़ों का पालन करते हैं, बताते हैं कि इस नस्ल के घोड़े अपने शारीरिक ढांचे, ऊंचाई और लहराते कानों के कारण अन्य नस्लों जैसे काठियावाड़ी, नुगरा, अरबी और सिंधी घोड़ों से अलग होते हैं। ऊंचाई और मजबूत संरचना में मारवाड़ी घोड़ों की औसत ऊंचाई 5 से 6 फीट होती है। इनके पैर मजबूत और संतुलित होते हैं। लहराते कान पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं, जो इन्हें विशिष्टता प्रदान करते हैं। स्वामीभक्ति और व्यवहार में ये घोड़े अपने मालिक के प्रति गहरी वफादारी दिखाते हैं और दोस्ताना स्वभाव के लिए जाने जाते हैं।
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मारवाड़ी नस्ल घोड़ा।
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इतिहास में मारवाड़ी घोड़ों का महत्व
महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा ‘चेतक’ मारवाड़ी नस्ल का था, जिसने हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी अंतिम सांस तक उनका साथ दिया। चेतक की वीरता और वफादारी भारतीय इतिहास में अमर है। इसके अलावा, जालोर के वीर वीरमदेव भी इसी नस्ल के घोड़े पर सवार होकर युद्धभूमि में उतरते थे।
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मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा।
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मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की ब्रीडिंग एक सुनियोजित प्रक्रिया
जालोर और राजस्थान के अन्य हिस्सों में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की ब्रीडिंग एक सुनियोजित प्रक्रिया के तहत की जाती है। उच्च गुणवत्ता वाले नर और मादा घोड़ों का चयन किया जाता है। इनका चयन उनकी ताकत, ऊंचाई, कानों की संरचना और वंशावली के आधार पर होता है। ब्रीडिंग के दौरान घोड़ों को विशेष आहार दिया जाता है, जिसमें हरा चारा, जई, चने और पोषक तत्व शामिल होते हैं। गर्भधारण और ब्रीडिंग के समय घोड़ों को संक्रमण से बचाने के लिए स्वच्छ और सुरक्षित स्थान दिया जाता है। प्रजनन के बाद नवजात शिशु को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। विशेषज्ञ इनकी सेहत, विकास और आहार पर लगातार ध्यान देते हैं।
मारवाड़ी नस्ल के घोड़े मुख्य रूप से सवारी, खेल और शाही परंपराओं में उपयोग किए जाते हैं। इनकी मांग न केवल राजस्थान और भारत के अन्य राज्यों (जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र) में है, बल्कि विदेशों में भी ये बेहद लोकप्रिय हैं। राजस्थान के विभिन्न महलों और राजघरानों में इनका उपयोग रॉयल फंक्शन और शो में होता है। मारवाड़ी घोड़े घुड़सवारी और दौड़ प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन करते हैं। जालोर से लेकर राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में इन घोड़ों ने नाम कमाया है।
जालोर में मारवाड़ी घोड़ों के पालक अपनी परंपराओं को सहेजते हुए इनकी देखभाल करते हैं। अमृतनाथजी महाराज के मठ में 18 मारवाड़ी घोड़े हैं, जिनकी देखभाल एक विशेष टीम करती है। अश्वपालक भोम सिंह ने बताया कि जालोर के घोड़ों ने देश भर में अपनी अलग पहचान बनाई है। राजस्थान के अलावा तमिलनाडु, महाराष्ट्र और दिल्ली में भी इनकी मांग है। मारवाड़ी घोड़ों की कीमत उनके शारीरिक ढांचे, नस्ल और प्रदर्शन क्षमता पर निर्भर करती है। इनकी कीमत 5 लाख रुपये से लेकर 5 करोड़ रुपये तक होती है। विदेशी घुड़सवारी प्रेमी भी इन घोड़ों को खरीदने में रुचि रखते हैं।