खटीमा के हालात
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खटीमा के ऋषिकेश मुर्खजी की बंगाली पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म आनंद का प्रसिद्ध संवाद है ”बाबू मोशाय! जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं…” लेकिन खटीमा में रह रहे बंगाली समाज के लोगों के जीवन से यह संवाद बिल्कुल उलट है। मिनी कोलकाता का अहसास कराने वाली खटीमा की बंगाली काॅलोनी के जिंदादिल लोगों की जिंदगी में बाढ़ के बाद मुश्किलें बढ़ गई हैं। बाढ़ में अपना सबकुछ गवां चुके लोग मुख्यधारा में आने के लिए फिर से संघर्ष करते दिख रहे हैं।
खटीमा में आई बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित वाले क्षेत्रों में एक बंगाली काॅलोनी के करीब 150 परिवार पिछले तीन दिनों से अपनी गृहस्थी को दोबारा पटरी पर लाने की जद्दोजहद में जुटे हैं। लोग अपनी झोपड़ियों को दोबारा बनाने के साथ ही सामान के बाढ़ में बहने से हुई बर्बादी का हिसाब-किताब लगा रहे हैं। मजदूरी के साथ बत्तख, मुर्गी और बकरी पालन कर हंसी-खुशी परिवार का भरण-पोषण करने वाले लोग अब रोजी रोटी के अलावा संक्रामक बीमारियों के फैलने की आशंका से सहमे हैं।
वार्ड 10 में पड़ने वाली बंगाली काॅलोनी के लोगों ने बताया कि रविवार रात से ही जलभराव होने लगा था। सोमवार सुबह विकराल रूप लेते हुए बाढ़ अपने साथ कई झोपड़ियों, घरेलू सामान, बकरियां, मुर्गियां आदि को बहाकर ले गई। काॅलोनी के एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ा। बरसाती पानी की निकासी नहीं होने के कारण बृहस्पतिवार तक भी नाव का इस्तेमाल करते रहे। लोगों ने कहा कि बाढ़ में राशन तक खराब हो गया है। अभी तक उन्हें किसी प्रकार की राहत सामग्री या आर्थिक मदद नहीं मिली है। निवर्तमान सभासद मुकेश कुमार ने कहा कि बाढ़ प्रभावितों को मुआवजा दिलवाने के प्रयास किए जा रहे हैं।