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कैंसर यानी ऐसा रोग, जिसमें हमारे शरीर की सामान्य कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित और असामान्य ढंग से बढ़ने लगता है। यह गांठ बनाता है…केवल रक्त कैंसर में गांठें नहीं बनतीं। इलाज न हो, तो गांठ बढ़कर दूसरे स्वस्थ हिस्सों की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचाने लगती है। ऐसा नहीं है कि कैंसर को हराया नहीं जा सकता। मजबूत इच्छाशक्ति और सही समय पर इलाज से यह संभव है। हिमाचल में कई ऐसे मरीज हैं जिन्होंने कैंसर को मात दी।
जिला पंचायत अधिकारी ने कैंसर को हराया, औरों के लिए बनीं मिसाल
अपनों का साथ और बीमारी से लड़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति से कैंसर को मात देना संभव है। एक दौर था की बंद आंखों को खोलने तक ही हिम्मत नहीं बची थी, लेकिन परिवार के साथ ने आज जीने ही नहीं, बल्कि जनसेवा के काबिल भी बना दिया है। यह कहना है एक साल तक कैंसर से जंग लड़ने वाली जिला पंचायत अधिकारी हमीरपुर शशिबाला का। कांगड़ा जिले की देहरा निवासी शशिबाला ठाकुर को साल 2016 में गले में एक गांठ का एहसास हुआ। वह जिले के सरकारी अस्पताल में उपचार के लिए गईं तो जांच के बाद डॉक्टरों ने सामान्य एंटीबॉयोटिक और दवाइयां शुरू कर दीं। चार से पांच माह में बीमारी कम होने की बजाय गले में गांठें बढ़ गईं। फिर परिवार वालों ने पीजीआई चंडीगढ़ में चेकअप करवाया। यहीं पर जांच के बाद नोन हिचकिंग लिम्फोमा नाम के कैंसर का पता चला। कैंसर थर्ड स्टेज में पहुंच गया था। शशिबाला कहती हैं कि उस वक्त पति यशपाल ठाकुर, बेटी इंदू ठाकुर और बेटे धमेंद्र ठाकुर ने मजबूती से संभाला। एक साल तक कीमो थैरेपी चली तो शरीर कमजोर हो गया। लोग कई प्रकार की बातें करते थे। लेकिन परिवार वालों का साथ इन बातों से कहीं ऊपर था। साल 2018 में रिकवर होकर फिर नौकरी पर सेवाएं शुरू कीं। अब और लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं।
पेट में था कैंसर, दो माह चपाती नहीं खाई
पंथाघाटी के पास स्थित चैली गांव की रहने वाली सुचेता वर्मा (54) ने तीसरी स्टेज के कैंसर को मात दी। उन्होंने बताया कि बीपी और गेस्टि्रक की समस्या थी, तो कसुम्पटी से दवाइयां व अन्य उपचार चला था। गेस्टि्रक की समस्या बढ़ी तो आईजीएमसी के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग में साल 2021 में एंडोस्कोपी टेस्ट करवाया। टेस्ट रिपोर्ट में पता चला कि पेट का कैंसर है। उस वक्त विंटर वेकेशन चल रही थी तो दिल्ली में ऑपरेशन करवाया। चंडीगढ़ में कीमोथैरेपी करवाई। उपचार कैंसर अस्पताल से ही चला था तो यहां पर रूटीन जांच जारी रखी। अब पूरी तरह स्वस्थ हैं। सुचेता ने कहा कि दो महीने तक उन्होंने चपाती तक नहीं खाई। अब पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद अन्य लोगों को बीमारी से लड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं।