Jharkhand: एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो ने कहा कि झारखंड में ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक अभियान’ सफल रहा है। इस अभियान में ग्राम पंचायतों, राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने भी सहयोग किया।
बाल श्रम
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बाल अधिकारों की शीर्ष संस्था राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने शुक्रवार को एक बड़ी घोषणा की है। एनसीपीसीआर के कहना है कि झारखंड की अभ्रक खानों को बाल श्रम से मुक्त कर दिया गया है। नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) का कहना है कि झारखंड में अभ्रक की खानों को बाल श्रम से मुक्त कर दिया गया है। बीबीए ने जिला प्रशासन और स्थानीय समुदायों की मदद से इस काम को अंजाम दिया है। बताया गया है कि झारखंड में अभ्रक की खानों में 20 हजार से अधिक बच्चे मजदूरी का काम कर रहे थे।
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो ने कहा, ‘आज मैं इस बात की घोषणा करता हूं कि झारखंड की अभ्रक खानों में मजदूरी करने वाले बच्चों को मुक्त करने के बाद विद्यालयों में दाखिला करवाया गया है। मुझे यह बताते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक अभियान’ सफल रहा है। इस अभियान में ग्राम पंचायतों, राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने भी सहयोग किया। हमने यह साबित कर दिया है कि बच्चों को न्याय दिलाने के लिए ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।’
बचपन बचाओ आंदोलन के अनुसार, ‘वर्ष 2004 में बीबीए द्वारा एक शोध किया गया और यह पाया गया कि झारखंड की अभ्रक खदानों में पांच हजार बच्चे मजदूरी कर रहे हैं। वर्ष 2019 तक यह संख्या बढ़कर 20 हजारसे अधिक हो गई। इसके साथ ही संयुक्त प्रयासों से ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक’ अभियान का जन्म हुआ। इसके बाद मजदूरी करने वाले प्रत्योक बच्चे का दाखिला स्कूल में कराया गया।’ बीबीए ने कहा कि इस अभियान की शुरुआत वर्ष 2004 में की गई थी। नक्सल प्रभावित जगहों में इस अभियान को चलाया गया। 684 गांवों के बच्चे, जो कि अभ्रक खदानों में काम कर रहे थे, अब बाल श्रम से मुक्त हो गए हैं। आगे बताया गया है कि अब तक कुल 20,584 बच्चों को खानों से मुक्त कर दिया गया है। इसके अलावा 30,364 बच्चों का दाखिला अलग अलग विद्यालयों में करवाया गया है।