लोकसभा चुनाव
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चुनावी रैलियां हों या फिर जनसभाएं। नेताओं की जुबान से मुख्य मुद्दे गायब हो जाते हैं और उनके भाषणों में निजी हमले ज्यादा होते हैं। वो चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो, आम आदमी पार्टी हो या फिर शिरोमणि अकाली दल। सभी पार्टियों के मुख्य नेता ही निशाने पर होते हैं। कोई भी पार्टी स्टेज से किसी भी ऐसे मुद्दे की बात नहीं करती जिन्हें वो सालों साल उठाकर जनता का भरोसा जीतती है।
लोकसभा चुनावों में मुद्दे 360 डिग्री बदल जाते हैं। बात करें पंजाब की तो यहां बरसों से किसानों को हर फसल पर एमएसपी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का मुद्दा सबसे ज्वलंत हैं। इसको लेकर कई आंदोलन हो चुके हैं और शंभू बैरियर पर अब भी किसान अपनी मांगों को लेकर बैठे हैं लेकिन मजाल है किसी पार्टी ने उनकी इस मांग पर अमल करने का कोई वादा अपने चुनावी प्रचार में किया हो।
भाजपा के नेता गांधी परिवार को घेरते हैं तो कांग्रेस मोदी पर निशाना साधती है। आम आदमी पार्टी के निशाने पर मोदी और सुखबीर बादल व उनका परिवार है। पंजाब के अधिकतर मतदाता ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और खेती-किसानी से जुड़े हैं, लेकिन अब नेताओं के स्टेज से किसान और उनकी मांगें पूरी तरह गायब हैं। वहीं पंजाब की नसों में फैल रहे नशे की बात भी कोई पार्टी इस मौके पर करना नहीं चाहती। सभी पार्टियां दूसरी पार्टियों के बड़े नेताओं पर निजी प्रहार कर अपने काडर वोटर को खुश कर रही हैं और अक्सर निजी हमलों से भीड़ खुश हो जाती है, इसलिए भी नेता ऐसा करते हैं। यही वजह से ही आमतौर पर गूंजने वाले मुद्दे चुनाव के दौरान शांत हो जाते हैं।