Ls Polls: Nota Was Most Suppressed In Bihar’s Gopalganj Lok Sabha, People Boycotted Votes At Many Booths. – Amar Ujala Hindi News Live

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LS Polls: NOTA was most suppressed in Bihar's Gopalganj Lok Sabha, people boycotted votes at many booths.

ईवीएम (सांकेतिक)
– फोटो : एएनआई

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गोपालगंज सुरक्षित संसदीय सीट पर लोकसभा चुनाव का परिणाम हमेशा से सुर्खियों में रहा है। कभी राजद सुप्रीमो के गृह जिला को लेकर तो कभी नोटा को लेकर।  2019 के चुनाव की तरह इस बार 2024 में भी नोटा ने रिकॉर्ड बनाया है। अंतर सिर्फ इतना रह गया कि पिछली 2019 के चुनाव में देशभर में सर्वाधिक नोटा को वोट गोपालगंज में मिला था, लेकिन इस बार इंदौर ने इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया। हालांकि, नोटा ने स्टेट स्तर पर इस बार भी अपना रिकॉर्ड कायम रखा। प्रदेश भर में 40 सीटों पर नोटा को सर्वाधिक वोट गोपालगंज सीट पर मिला है। ऐसा क्यों हो रहा, किसी भी पार्टी या प्रत्याशी ने इसपर मंथन नहीं किया। चुनाव से पहले वोट बहिष्कार की खबरें इस बार भी आती रहीं लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधि किसी ने भी इसकी सुध नहीं ली। मतदान के दिन भी लोगों ने वोट का बहिष्कार किया और कई बूथों पर वोट डालने तक नहीं गए।

नोटा को वोट देकर जताया विरोध

गोपालगंज लोकसभा के भोरे विधानसभा स्थित बूथ नंबर 367 प्राथमिक विद्यालय मिश्रौली के मतदाता चंद्रशेखर पांडेय ने बताया कि प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी से हमने नोटा को अपना मत देकर विरोध किया। चार जून को चुनाव परिणाम आने के बाद नोटा ने सभी को चौंका दिया और मंथन करने पर मजबूर कर दिया। हालांकि, इस बार पिछली बार के चुनाव के मुकाबले नोटा को आठ हजार 797 वोट कम मिले हैं। चुनाव परिणाम के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2024 के चुनाव में नोटा काे 42 हजार 863 वोट मिले हैं। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में नोटा को 51 हजार 660 वोट मिले थे।

देश में कब से नोटा हुआ लागू

भारत में नोटा की शुरुआत 27 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद की गयी थी। इसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से हतोत्साहित करना था। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर नोटा का विकल्प उन मतदाताओं के लिए उपलब्ध है जो किसी भी राजनीतिक उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना चाहते हैं। इससे उन्हें अपना निर्णय बताए बिना वोट न देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति मिलती है। नोटा की संख्या बढ़ने से यह अनुमान लगाया जा रहा है की प्रत्याशियों के प्रति मतदाताओं में नाराजगी है।



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