लोकसभा चुनाव का पांचवा चरण।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
पांचवें चरण में हो रहा लोकसभा का यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘सेफ जोन’ की तरह माना जाता है। दरअसल भारतीय जनता पार्टी और एनडीए ने मिलकर पिछले लोकसभा चुनाव में पांचवें चरण की 49 सीटों पर जिस तरह से बैटिंग की थी, वह उसको सत्ता की सीढ़ी तक ले गई। जबकि 2014 में भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने सियासी ग्राफ को इस चरण में मजबूती के साथ आगे बढ़ाया था। सियासी जानकारों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने इसी मजबूत सियासी ग्राफ के मद्देनजर पूरी फील्डिंग पांचवें चरण की 49 सीटों पर लगा दी है। वहीं INDI गठबंधन और उसके सियासी दलों, जिसमें कांग्रेस और सपा समेत शिवसेना ने पांचवें चरण के लिए 2014 से पहले वाली रवायत को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तैयारी की है।
पांचवें चरण में आठ राज्यों में हो रहे 49 सीटों के लिए सोमवार सुबह से मतदान जारी है। केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में हुए पांचवें चरण के मतदान में भारतीय जनता पार्टी ने 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इन सीटों में भारतीय जनता पार्टी ने 80 फीसदी सफलता के साथ 32 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को सांसद बनवाया था। जबकि 2014 में हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 27 सीटें जीती थीं। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं 2009 में भारतीय जनता पार्टी ने 49 सीटों में से महज 6 सीटें ही जीत सकी थी। राजनीतिक विश्लेषक हरिहर पांडे कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरीके से इस चरण की सीटों पर सफलता का अपना दायरा बढ़ाया है वह उसके लिए पांचवें चरण में सेफ जोन के तौर पर देखा जा रहा है।
केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी ने अपनी मजबूत पकड़ पांचवें चरण की 49 सीटों पर बनाई। ठीक उसी तरह से धीरे-धीरे कांग्रेस पार्टी में अपनी पकड़ कमजोर की। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2009 में कांग्रेस ने इन 49 सीटों में से 14 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का ग्राफ बहुत तेजी से नीचे गिरा और वह महज दो सीटें ही जीत सकी। 2019 में तो कांग्रेस महज एक सीट पर सिमट गई और भारतीय जनता पार्टी ने अपना पांचवें चरण की 49 सीटों में सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। राजनीतिक जानकार जितेंद्रमणि त्रिपाठी कहते हैं कि दोनों पार्टियों के गिरते और बढ़ते जनाधार के आधार पर इस चुनाव में भी सियासी कयासबाजी तो की ही जा रही है।