Khabron Ke Khiladi: Will Caste Census Bring Social Harmony Or Is It Just Politics? – Amar Ujala Hindi News Live

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Khabron Ke Khiladi: Will caste census bring social harmony or is it just politics?

खबरों के खिलाड़ी।
– फोटो : अमर उजाला

संसद के मानसून सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष ने एक दूसरे पर लगातार हमलावर हैं। सदन में जाति को लेकर जमकर हंगामा हो रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के भाषण के दौरान हुआ हंगामा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं, विपक्ष के नेता राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक जातिगत जनगणना की मांग पर अड़े हैं। इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में इस मुद्दे पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, पूर्णिमा त्रिपाठी और अवधेश कुमार मौजूद रहे। 

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रामकृपाल सिंह: यह भारतीय राजनीति का विरोधाभास है। इस दौर की ज्यादातर पार्टियां जेपी के आंदोलन से निकली हैं। इस आदोलन में संपूर्ण क्रांति की बात थी। जेपी जाति को पूरी तरह खत्म करने की बात करते थे। उस आंदोलन से निकले नेता जाति तोड़ो की बात करते थे। जनता पार्टी ने मंडल आयोग बनाया। उस रिपोर्ट को वीपी सिंह ने लागू किया। ये कुल मिलाकर जातियों के उत्थान की बात नहीं है बल्कि, विपक्ष आरक्षण के मुद्दों को प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश है। 

पूर्णिमा त्रिपाठी: हमारा समाज जातियों में बंटा है। जातियों से हमको जल्दी मुक्ति मिलती भी नहीं दिख रही है। सभी पार्टियां अलग-अलग जातियों की राजनीति करती रही हैं। राहुल गांधी ने जब से जाति जनगणना की बात शुरू की है तब से इस मुद्दे में धार ज्यादा आ गई है। इसलिए भाजपा की तरफ से हर तरह का वार किया जा रहा है। हालांकि, अनुराग ठाकुर ने नाम नहीं लिया उसके बाद भी उन्होंने जो टिप्पणी की उस पर बवाल होना लाजमी था। जो हो भी रहा है। हर पार्टी का मकसद इसके पीछे वोट की राजनीति है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस या फिर जाति आधारित राजनीति करने वाली दूसरी पार्टियां हों। 

अवधेश कुमार: देश में हजार वर्ष के कालखंड में जाति के आधार पर भेदभाव हुए। एक बार मंडल के कारण जो जातीय युद्ध हुआ था क्या देश में सत्ता के लिए फिर से उसी तरह का युद्ध कराने की कोशिश हो रही है। किसी पत्रकार वार्ता में क्या कभी सुना गया कि यहां कितने दलित हैं। क्या इस तरह की भाषा सामाजिक न्याय की भाषा है। राजनीतिक लाभ हानि तभी होगी जब देश बचा रहेगा। वोट के लिए किसी भी स्तर पर जाना गलत है। जाति हमारे देश की स्थाई व्यवस्था नहीं थी। मैं यह भी मानता हूं कि पूर्व केंद्रीय मंत्री को भी उस भाषा में नहीं जाना चाहिए था। 

विनोद अग्निहोत्री: जाति की राजनीति इस देश में हजारों से साल से चल रही है। जब यह तय हुआ था कि क्षत्रिय शासन करेगा, ब्राह्मण विद्या लेगा और वैश्य व्यापार करेगा। मंडल आने के बाद जाति के विमर्श को उभार दिया गया। मंडल के बाद राजनीति बदली है। आंकड़े देखेंगे तो बिहार में जाति आधारित नरसंहार मंडल के पहले होते थे उतने आज नहीं होते हैं। जाति जनगणना राजनीतिक हथियार है। लेकिन, जब आप कपड़ों से पहचानने की बात करते हैं तो यह भी राजनीतिक हथियार है। जाति पूछकर अपमान करना अपराध है और जाति जानकारी के लिए पूछना अपराध नहीं है। 

समीर चौगांवकर: नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से अनुराग ठाकुर के भाषण के लिए कहा है कि सबको यह भाषण सुनना चाहिए। उससे यह तय हो गया है कि भाजपा कैसे इस मुद्दे को आगे बढ़ाएगी। राहुल गांधी को लग रहा है कि जातियां भाजपा से छूट सकती हैं। इसलिए अब वो यह कह रहे हैं कि भाजपा तय करे कि वह जातिगत जनगणना कराएगी या नहीं। राहुल गांधी जो शुरुआत कर रहे हैं वो अपना राजनीति को बढ़ाने से ज्यादा भाजपा को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।







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