पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक ट्रेनी डॉक्टर से हुई दरिंदगी और हत्या का मामला पूरे हफ्ते छाया रहा। इस मामले में ममता बनर्जी सरकार पर कई सवाल उठ रहे हैं। इस वीभत्स घटना पर एक तरफ सोशल मीडिया पर गुस्सा दिखाई दे रहा है तो दूसरी तरफ राजनीतिक दल जमकर बयानबाजी कर रहे हैं। इस हफ्ते ‘खबरों के खिलाड़ी’ में इसी पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, अवधेश कुमार, राखी बख्शी और राकेश शुक्ल मौजूद रहे।
रामकृपाल सिंह: हत्या और दुष्कर्म के साथ कोई विशेषण लगाने की जरूरत नहीं है। यह हमेशा से ही जघन्य है। बंगाल के इतिहास को देखते हैं तो वहां की राजनीति में हिंसा होती रही है। यह वामपंथियों के दौर में भी था और ममता बनर्जी के में उसी का वीभत्स रूप दिखाई देता है। ताज्जुब तब होता है, जब वो कहती हैं कि भाजपा राम और वाम है। मुख्यमंत्री सड़क पर उतरकर किससे न्याय मांग रही हैं? यह तो हास्यास्पद है। यह सुनियोजित हिंसा का वीभत्स रूप है।
अवधेश कुमार: इस समय जो बंगाल की स्थिति है, उसके लिए शब्द भी देना मुश्किल है। एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ एक प्रतिष्ठित अस्पताल में इस तरह की घटना होना कहां से सही है।
राकेश शुक्ल: यह पहली बार नहीं है, जब ममता बनर्जी सड़क पर उतरी हैं। 2022 में इसी तरह की घटना हुई थी। 2019 में अपने पुलिस अधिकारी राजीव कुमार को बचाने के लिए ममता बनर्जी सड़क पर उतर गई थीं। जब पुलिस कार्रवाई कर रही थी, तब आप कह रही थीं कि सात दिन में आरोपियों को पकड़ना मुश्किल है। अब जब सीबीआई जांच कर रही है तो आप कह रही हैं कि सात दिन में आरोपियों को फांसी दे दीजिए।
विनोद अग्निहोत्री: बंगाल की घटना शर्मसार करने वाली है। निर्भया कांड के बाद थोड़ी उम्मीद जगी थी और लगा कि शायद अब इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। घनटनाएं घटती हैं, लेकिन उसके बाद का फॉलोअप महत्वपूर्ण होता है। इस घटना में जो पुलिस और सरकार की प्रतिक्रिया हुई, वह भी शर्मनाक रही। उसके बाद प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हुआ हमला, उससे भी ज्यादा शर्मनाक है।
समीर चौगांवकर: यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि राजनीतिक दल इस तरह की घटनाओं में भी राजनीति देखते हैं। अगर बिलकिस बानो के दुष्कर्मियों को राज्य सरकार छोड़ दे और कोर्ट की फटकार के बाद उन्हें जेल भेजा जाए तो यह भी उतना ही बुरा है, जितना बुरा बंगाल में हुआ दुष्कर्म और हत्याकांड है। गोपाल कांडा का समर्थन लेना भी उतना ही बुरा है। संदेशखाली की पीड़ित चुनाव हार जाती है और गोपाल कांडा चुनाव जीत जाता है।