Khabaron Ke Khiladi Atul Subhash Case System Society Or Law Responsible Know Expert Views News And Updates – Amar Ujala Hindi News Live

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Khabaron Ke Khiladi Atul Subhash Case System Society or Law responsible know Expert views news and updates

खबरों के खिलाड़ी।
– फोटो : Amar Ujala

बंगलूरू के इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला बीते हफ्ते सुर्खियों में रहा। इस मामले के सामने आने के बाद यह चर्चा हो रही है कि क्या हमारे देश का कानूनों को लैंगिग रूप से समान बनाने का वक्त आ गया है? क्या यह कानून की खामियों में सुधार का वक्त या ये कानून के दुरुपयोग का मामला है? इस हफ्ते के खबरों के खिलाड़ी में ऐसे ही सवालों पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, राकेश शुक्ल, अवधेश कुमार और रुद्र विक्रम सिंह मौजूद रहे। 

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रुद्र विक्रम सिंह: देश में पुरुषों की आत्महत्या की जो दर है उसे अगर देखें तो 2021 में आत्महत्या के कुल मामलों में 52 फीसदी पुरुष थे। 2022 में ये 73 फीसदी हो गई। 2024 के आंकड़े जब जाएंगे तो ये संख्या और बढ़ सकती है। दूसरा डिस्कट्रिक्ट कोर्ट की स्थिति जो है उसे देखेंगे तो दिल्ली को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में यह स्थिति है जज के सामने पेशकार तारीख लगवाने के लिए पैसे लेते हैं। दहेज उत्पीड़न के मामलों में स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि एक महिला को कुछ भी दिक्कत है या नहीं तो वो तीन-चार मामले कहीं भी डाल सकती है। मुझे लगता है कि इन मुद्दों पर बात की जानी चीहिए। और जेंडर न्यूट्रल कानूनों पर बात की जानी चाहिए। 

विनोद अग्निहोत्री: अतुल सुभाष का मामला बहुत की संवेदनशील और मार्मिक मामला है। कहीं न कहीं कानून का दुरुपयोग तो होता है। हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है। महिलाओं का जिस तरह से उत्पीडन होता रहा है। उसके परिपेक्ष्य में ये कानून बने हैं। अतुल सुभाष के मामले के बाद हमें भावना में बहकर एक तरफा नहीं सोचना चाहिए। बल्कि बहुत ही संतुलित तरीके से फैसला लेना होगा। कोशिश ये करनी होगी कि कानून का दुरुपयोग न हो। 

रामकृपाल सिंह: हमारे न्यायशास्त्र की जो अवधारणा है उससे अलग हटकर कोई कानून नहीं बनना चाहिए। इसमें कहा गया है 99 अपराधी भले छूट जाएं लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए। इस न्यायशास्त्र के मूल में यह भी कहा गया है कि आरोपों की पुष्टि आरोप लगाने वाले को करनी होगी। जब भी कानून इससे विचलित होता तो इस तरह की विसंगतियां आती हैं। 

पूर्णिमा त्रिपाठी: हम सब ने देखा है कि 498 ए का दुरुपयोग होता है। किसी भी कानून के इस्तेमाल के लिए एक चेक एंड बैलेंस होना चाहिए। मुझे लगता है कि आज न्याय संहिता की बात हो रही है। तो उसमें इस तरह के दुरुपयोग न हो इस पर भी बात होनी चाहिए। 

अवधेश कुमार: कानून और न्यायालय तक हम अगर इस बात को मानते हैं तो इसका समाधान नहीं होगा। जिन लोगों ने मुकदमा लड़ा होगा उन्हें पता है कि किस तरह उसे न्यायिक व्यवस्था से विरक्ति हो जाती है। दहेज का केस मैंने जितना अध्ययन किया है मुझे तो एक केस सही नहीं मिला। ये कानून अंग्रेजों ने अपनी सुविधा से बनाया। उसे हमने आगे बढ़ाया। 

राकेश शुक्ल: विवाह होता है तो सात वचनों का संकल्प लिया जाता है। समाज गवाह होता है। हमारे यहां बहुत कम ऐसे मामले हैं जो अतुल सुभाष जैसे मामले होते हैं। हमारे यहां विवाह विच्छेद की बात नहीं है। कानून जो बनाए जाते हैं वो आपके हित के लिए बनाए जाते हैं। हम उसका दुरुपयोग करते हैं। जब तक हम संयुक्त नहीं होंगे हम समाज में जी नहीं पाएंगे।

 



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