बलिदानी विनोद का पार्थिव शरीर लिए सेना का वाहन जैसे ही मार्ग से उनके घर की गली की तरफ मुड़ा तो बलिदानी के पिता की आंखों से आंसू टपक पड़े। उनकी बेटी ने उन्हें संभालते हुए कहा, पापा रोना मत, उधर देखो फौज के कितने छोटे-छोटे बच्चे (सैनिक) उनके बेटे को लेकर आ रहे हैं।
ऐसा बलिदान हर किसी को नसीब नहीं होता। पिता ने रूंधे गले से जवाब दिया- मैं बेटे के बलिदान पर नहीं बल्कि उसके बच्चों को देखकर परेशान हूं। बीर सिंह भंडारी ने अपने चार साल के पोते सारांश को काफी देर तक गले से लगाकर रखा।
दादा सारांश को दुलारते हुए कह रहे थे कि इसके पास भी एक गन है। सारांश बड़ा होकर देश के दुश्मनों को मार गिराएगा। इतना कहते-कहते उनकी आंखें झरना बन जाती हैं। बलिदानी विनोद भंडारी के सम्मान में अठूरवाला और रानीपोखरी बाजार बंद रहा।
इस दौरान पूर्व सैनिक संगठन और लोगों ने पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए। बलिदानी को सेना ने बैंड धुनों और शस्त्रों से अपने रिवाज से अंतिम सलामी दी। स्थानीय पुलिस-प्रशासन की व्यवस्था चाक-चौबंद रही।
बलिदानी विनोद भंडारी तीन बहनों के इकलौते भाई थे। दो बहनें घर पहुंच गई थीं, मझली बहन लंदन में रहती हैं। वह सूचना पाकर लंदन से रवाना हो चुकी हैं। वह बलिदानी भाई की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो पाईं।
बलिदानी के चाचा शूरवीर सिंह भंडारी ने बताया कि बलिदानी के घर पर उनकी दो बहनें सीमा और संगीता पहुंच गई थीं। दूसरे नंबर की बहन नीमा लंदन से सूचना पाकर चल पड़ी हैं।