Karnataka Government On Back Foot Over Kannada Speaking People Reservation Private Industries Bill Withdrawn – Amar Ujala Hindi News Live

0
53


Karnataka Government on back foot over Kannada speaking people reservation private industries Bill withdrawn

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया
– फोटो : एएनआई

विस्तार


कर्नाटक सरकार ने बुधवार को निजी क्षेत्र में कन्नड़ लोगों के लिए आरक्षण अनिवार्य करने से जुड़े विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। दरअसल, कर्नाटक में सोमवार को राज्य उद्योग, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय यानी कन्नड़ उम्मीदवारों के लिए रोजगार विधेयक 2024 को राज्य मंत्रिमंडल की ओर से मंजूरी दी गई थी।

Trending Videos

मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया कि निजी क्षेत्र के संगठनों, उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ लोगों को आरक्षण देने के लिए मंत्रिमंडल की ओर से स्वीकृत विधेयक को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है। इस पर आगामी दिनों में फिर से विचार किया जाएगा और निर्णय लिया जाएगा।

इससे पहले खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इसे लेकर मुश्किलों में घिर गए थे। दरअसल, उन्होंने पहले एक ट्वीट कर निजी उद्योगों में ‘सी और डी’ श्रेणी के 100 प्रतिशत पदों को कन्नडिगा (कन्नड़भाषी) लोगों के लिए आरक्षित करने की बात कही थी। इस पर जब विवाद बढ़ा तो उन्होंने इसे डिलीट कर नया ट्वीट किया।

इसमें उन्होंने लिखा था, ‘सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में राज्य के निजी उद्योगों और अन्य संगठनों में कन्नड़ लोगों के लिए प्रशासनिक पदों के लिए 50% और गैर-प्रशासनिक पदों के लिए 75% आरक्षण तय करने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी गई। हमारी सरकार की इच्छा है कि कन्नड़ लोगों को उनकी ही धरती पर नौकरियों से वंचित न होना पड़े और उन्हें मातृभूमि में आरामदायक जीवन जीने का अवसर मिले। हम कन्नड़ समर्थक सरकार हैं। हमारी प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण का ध्यान रखना है।’ हालांकि, अब इस विधेयक को वापस ले लिया गया है।

विवाद क्यों?

दरअसल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक दिन पहले ही कहा था कि कर्नाटक मंत्रिमंडल ने राज्य के सभी निजी उद्योगों में ‘सी और डी’ श्रेणी के पदों के लिए 100 प्रतिशत कन्नडिगा (कन्नड़भाषी) लोगों की भर्ती अनिवार्य करने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार की प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण की देखभाल करना है। इस विधेयक का उद्योगपतियों से लेकर विपक्ष तक ने विरोध किया। इसके बाद मुख्यमंत्री ने बुधवार को अपना ट्वीट डिलीट कर दिया। 

कई उद्योगपतियों ने विरोध जताया

इससे पहले कई उद्योगपतियों ने बुधवार को इस विधेयक का विरोध जताया था। उन्होंने कहा था कि यह भेदभावपूर्ण है और आशंका जताई कि टेक उद्योग को नुकसान हो सकता है। मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन सर्विसेज के अध्यक्ष मोहनदास पई ने कहा कि विधेयक फासीवादी और असंवैधानिक है। उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा कि इस विधेयक को रद्द कर दिया जाना चाहिए। यह भेदभावपूर्ण और संविधान के खिलाफ है। साथ ही पई ने कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश को टैग करते हुए पूछा कि क्या सरकार को यह सिद्ध करना है कि हम कौन हैं? यह एनिमल फार्म जैसा फासीवादी बिल है। हम सोच भी नहीं सकते कि कांग्रेस इस तरह का विधेयक लेकर आ सकती है। क्या एक सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र की भर्ती समितियों में बैठेगा? लोगों को भाषा की परीक्षा देनी होगी?







Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here