मोहन भागवत
– फोटो : PTI
विस्तार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि लोगों को मानव जाति के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए। विकास और मानव महत्वाकांक्षा की खोज का कोई अंत नहीं है। भागवत ने कहा कि आत्म-विकास के लिए एक व्यक्ति ‘सुपरमैन’, फिर ‘देवता’ और ‘भगवान’ बनना चाहता है और ‘विश्वरूप’ की आकांक्षा रखता है, लेकिन कोई भी जानता कि आगे क्या है?
एक गैर-लाभकारी संगठन विकास भारती की ओर से आयोजित ग्राम-स्तरीय कार्यकर्ता बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग इंसान होते हुए भी मानवीय गुणों से रहित हैं। उन्हें पहले इसे अपने अंदर विकसित करना चाहिए। भागवत ने कहा कि मानवीय गुणों को प्राप्त करने के बाद, मनुष्य अलौकिक शक्तियों के साथ सुपरमैन बनने और फिर ‘देवता’ और ‘भगवान’ का दर्जा प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है। फिर वह परम शक्ति का सर्वव्यापी रूप चाहता है। इसके आगे क्या है, कोई भी नहीं जानता।
भागवत ने कहा कि कोविड-19 महामारी के बाद पूरी दुनिया को पता चला कि भारत के पास शांति और खुशहाली का रोडमैप है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘सनातन धर्म’ मानव जाति के कल्याण में विश्वास करता है। उन्होंने कहा कि देश की बेहतरी के लिए बहुत से लोग मिलकर काम कर रहे हैं। इसलिए उन्हें देश के भविष्य की फिक्र नहीं है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से समाज के कल्याण के लिए अथक प्रयास करने का अनुरोध किया।
भागवत ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे देश के कल्याण के लिए प्रयास करें। मोहन भागवत ने कहा, “पिछले 2,000 वर्षों में कई प्रयोग किए गए, लेकिन वे भारत की पारंपरिक जीवन शैली में निहित खुशी और शांति प्रदान करने में विफल रहे। कोरोना के बाद दुनिया को पता चला कि भारत के पास शांति और खुशहाली का रोडमैप है।” उन्होंने कहा कि उन्हें देश के भविष्य की कभी चिंता नहीं रही, क्योंकि कई लोग मिलकर इसकी बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं, जिसका नतीजा सामने आना तय है। उन्होंने कहा, “देश के भविष्य को लेकर कोई संदेह नहीं है, अच्छी चीजें होनी चाहिए, सभी इसके लिए काम कर रहे हैं, हम भी प्रयास कर रहे हैं।”
आएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि आदिवासी पिछड़े हुए हैं और उनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “जंगल के इलाकों में जहां आदिवासी पारंपरिक रूप से रहते हैं, वहां के लोग शांत और सरल स्वभाव के होते हैं, जो बड़े शहरों में नहीं मिलते। यहां मैं ग्रामीणों पर आंख मूंदकर भरोसा कर सकता हूं, लेकिन शहरों में हमें सावधान रहना होगा कि हम किससे बात कर रहे हैं।”
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत के लोगों का अपना अलग स्वभाव है। कई लोग बिना किसी नाम या प्रसिद्धि की इच्छा के देश के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारे यहां पूजा की अलग-अलग शैलियां हैं। हमारे यहां 33 करोड़ देवी-देवता हैं और यहां 3,800 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं। यहां तक कि खान-पान की आदतें भी अलग-अलग हैं। इतने सारे अंतर के बावजूद हमारा मन एक है और यह दूसरे देशों में नहीं पाया जा सकता।” मोहन भागवत ने कहा कि आजकल तथाकथित प्रगतिशील लोग समाज को कुछ देने में विश्वास करते हैं, जो भारतीय संस्कृति में निहित है। उन्होंने कहा, “शास्त्रों में ऐसा कहीं नहीं लिखा है, लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी यह हमारे स्वभाव में है।” उन्होंने गांव के कार्यकर्ताओं से समाज के कल्याण के लिए अथक प्रयास करने का भी आग्रह किया।