अमर उजाला ग्राउंड रिपोर्ट
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कहने को झंझारपुर छोटा सा कस्बा है। यहां अब ऐसी कोई खासियत भी नहीं है, जिसके लिए इसे जाना जाता हो। पर बिहार में तीसरे चरण की जिन कुछ सीटों पर मुकाबला बेहद रोचक है, उनमें दरभंगा और मधुबनी से लगी यह लोकसभा सीट भी शामिल है। इस बार एनडीए से राम प्रीत मंडल और महागठबंधन से सुमन कुमार महासेठ मैदान में हैं। लेकिन सबसे रोचक तो गुलाब सिंह की एंट्री है। राजद के बागी गुलाब सिंह यादव बसपा से टिकट लेकर चुनाव मैदान में हैं। वे पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के मनाने पर भी नहीं माने। उनसे सुमन कुमार का नुकसान होना तय है।
विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को महागठबंधन में राजद के कोटे से तीन सीटें मिली हैं, गोपालगंज, मोतीहारी और झंझारपुर। पार्टी ने यहां सुमन को उतारा है। दिलचस्प यह कि मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने जब महागठबंधन के साथ जाने का एलान किया तो उनकी अपनी पार्टी में ही भगदड़ मच गई और कई नेता जदयू में चले गए। सहनी ने 2015 के चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार किया था। वे बॉलीवुड फिल्मों में स्टेज डिजाइनर का काम कर चुके हैं और उनकी फिल्म कंपनी मुकेश सिनेवर्ल्ड के नाम से है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी उन्हें तीन सीटें महागठबंधन से मिली थीं, पर कोई नहीं जीत सके थे। उन्हें मल्लाह का बेटा कहा जाता है। 27 मार्च 2022 तक वे बिहार सरकार में पशुपालन मंत्री थे।
कांसे के बर्तन, आजादी की जंग और पत्रों पर 74
कमला और बलान नदियों के तट पर बसे इस शहर की ख्याति पहले कांसे के बर्तनों को लेकर थी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आजादी के दीवानों ने झंझारपुर थाने को जला दिया था। फिलहाल यह मधुबनी जिले का हिस्सा है। बताया जाता है कि 1753 ईसवी में मिथिलेश नरेंद्र सिंह और अली वर्दी की सेनाओं के बीच कन्दर्पी घाट में युद्ध हुआ था, जिसमें मिथिलेश की जीत हुई। युद्धस्थल से धूल और रक्त से सने 74 सेर जनेऊ इकट्ठा किए गए। आज भी इस इलाके में पत्रों पर 74 लिखने की परंपरा है। मान्यता है जिसके नाम पत्र है, उसके अलावा किसी ने खोला तो उसे उतने ब्राह्मणों की हत्या का पाप लगेगा। मोहम्मद गौरी के हाथों हार के बाद पृथ्वीराज चौहान के सरदार इधर-उधर बिखर गए। इनमें से ही एक जुझार सिंह ने इस जगह को अपना ठिकाना बनाया। उन्हीं के नाम का अपभ्रंश झंझार से झंझारपुर बना।
जगन्नाथ मिश्र, धनिक लाल मंडल और राजहंस
दरअसल बिहार की राजनीति में बड़ा नाम रहे जगन्नाथ मिश्र इसी सीट से जीतकर वर्ष 1972 में सांसद और बाद में मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1977 और 1980 में कांग्रेस के धनिक लाल मंडल भी यहां से सांसद बने। 1984 में कांग्रेस के गौरीशंकर राजहंस यहां से जीते। इस सीट से देवेंद्र सिंह यादव पांच बार सांसद रहे और केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। देवेंद्र तीन बार लगातार 1989, 91 और 96 में जनता दल के टिकट पर और 1999 और 2004 में राजद के टिकट पर जीते। 98 में यह सीट राजद के मंगनी लाल मंडल के पास चली गई। 2009 में जदयू से मंगनी लाल मंडल फिर सांसद बने। 2014 में पहली बार इस सीट से मोदी लहर में भाजपा को जीत हासिल हुई और वीरेंद्र कुमार चौधरी सांसद बने। 2019 में जदयू के रामप्रीत मंडल को जीत हासिल हुई। तब भाजपा और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था।
मुद्दे और मतदाता
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां 18,52,417 मतदाता थे। इस संसदीय सीट से छह विधानसभा सीट जुड़ी हैं। राजनगर के नौलखा पैलेस के पास रहने वाले गिरीश कहते हैं, यह इलाका बहुत पिछड़ा हुआ है, किसी ने यहां काम नहीं किया। वहीं, राजनगर में जीवन शर्मा कहते हैं कि भाजपा अच्छा काम कर रही है, उसे जीतना चाहिए। पर, यहां से जद यू को टिकट देकर सब गड़बड़ कर दिया। भाजपा का प्रत्याशी होता तो सीधे जीतता। शायद इसी वजह से इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है।