भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में जलवायु संकट पर चल रही सुनवाई के दौरान विकसित देशों पर निशाना साधा। नई दिल्ली ने कहा कि इन देशों ने वैश्विक कार्बन बजट का ज्यादा हिस्सा इस्तेमाल किया, जलवायु वित्त का वादा पूरा नहीं किया और अब विकासशील देशों से उनके संसाधनों का उपयोग कम करने की मांग कर रहे हैं। आईसीजे में सुनवाई यह तय करने के लिए हो रही है कि देशों के पास जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कानूनी जिम्मेदारियां क्या हैं और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो इसके परिणाम क्या होंगे।
विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव लूथर एम रंगरेजी ने बृहस्पतिवार को भारत का पक्ष रखते हुए कहा कि जिन देशों ने ऐतिहासिक रूप से नगण्य उत्सर्जन किया है उनसे जलवायु परिवर्तन को कम करने में समान बोझ उठाने की अपेक्षा करना अन्यायपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विकसित देशों ने वैश्विक कार्बन बजट का असंगत तरीके से उपयोग किया है। विकसित देशों को 2050 से पहले ही नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करके दुनिया के सामने उदाहरण पेश करना चाहिए।
असमानताओं को दूर किया जाना आवश्यक
भारत ने कहा कि विकासशील देशों के दायित्व जलवायु वित्त और जलवायु न्याय इन दो महत्वपूर्ण पहलुओं की पूर्ति पर निर्भर करते हैं। लेकिन विकसित देशों की ओर से जलवायु परिवर्तन को कम करने में विकासशील देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मदद नहीं दी जा रही है। जिम्मेदारी और क्षमता में मौजूदा असमानताओं को दूर किए बिना जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सहयोग सफल नहीं हो सकता।
नागरिकों पर बोझ डालने की हमारी एक सीमा
रंजरेजी ने कहा कि भारत में दुनिया की 17.8 फीसदी आबादी रहती है। इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन में उसका योगदान 4 फीसदी से भी कम है। उन्होंने कहा कि अपने नागरिकों पर बोझ डालने की हमारी एक सीमा है, भले ही हम दुनिया की आबादी के छठे हिस्से के सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विकसित देशों की ओर से वादा किए गए वित्तीय, तकनीकी समर्थन की कमी के बावजूद, भारत पेरिस समझौते के तहत अपने एनडीसी के लिए प्रतिबद्ध हैं। एनडीसी यानी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए हर देशों की तरफ से बनाई जाने वाली योजना है।
14 दिसंबर तक चलेगी सुनवाई
दो दिसंबर से शुरू हुई यह सुनवाई 14 दिसंबर तक चलेगी। दुनिया भर के 15 जजों की पीठ मामले में सुनवाई कर रही है। हालांकि, आईसीजे की ओर से लिया गया कोई भी निर्णय बाध्यकारी नहीं होगा और अमीर देशों को गरीब देशों की मदद के लिए बाध्य नहीं किया जा सकेगा।