पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम आदेश जारी करते हुए एनडीपीएस के मामले में पांच माह की गर्भवती महिला को प्रसव के 1 वर्ष बाद तक के लिए अंतरिम जमानत दे दी है।
हालांकि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि जमानत के लिए गर्भ धारण का चलन न बन जाए इस बात पर विचार जरूरी है। ऐसे में हाईकोर्ट ने शर्त लगाई है कि यदि जमानत की अवधि के दौरान वह फिर से गर्भवती हो जाती है तो उसे फिर यह लाभ नहीं मिलेगा। अगर दुर्भाग्यवश महिला का गर्भपात होता है तो उसे 30 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करना होगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कारावास को स्थगित कर दिया जाए तो आसमान नहीं गिर जाएगा, और न ही समाज रातों रात बदल जाएगा। गर्भावस्था की जटिल और संवेदनशील अवधि के दौरान कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। बच्चे को जन्म देने के कम से कम एक साल बाद तक कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। जब अपराध बहुत गंभीर हों तब भी वे अस्थायी जमानत की हकदार हैं, जिसे प्रसव के एक वर्ष बाद तक बढ़ाया जा सकता है। जेल में जन्म लेने से बच्चे के मन पर हमेशा के लिए हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को जेल नहीं बल्कि बेल जरूरी है।
हाईकोर्ट ने कहा कि अदालतों के नरम रवैये को देखते हुए कोई महिला जेल से बाहर रहने के लिए गर्भवती होने का बहाना न बनाए, क्योंकि हर दूसरी महिला जेल से बाहर रहने के लिए गर्भवती होना पसंद कर सकती है। ऐसी कहानी न बन जाए कि भ्रष्टाचार के लिए आजीवन कारावास भुगत रही महिला जेल भेजने से पहले 13 बार गर्भवती होकर एक दशक के लिए सजा से बच जाए।
गर्भवती की जमान पर करुणा से विचार जरूरी
याचिकाकर्ता 24 वर्ष की एक युवा महिला है और बुरी संगति में रहती थी। याची के बार-बार अपराध करने से ज्यादा अहम यह है कि वह गर्भवती है। गर्भावस्था के दौरान जेल में बंद गर्भवती मां को जमानत पर निर्णय के समय सहानुभूति और करुणा के साथ विचार करने की आवश्यकता है। मातृत्व के पालने और सभ्यता की नर्सरी घास के मैदानों में होती है, पिंजरों में नहीं। महिला का गर्भवती होना एक विशेष परिस्थिति है, जिसे समझना जरूरी है।
मां की कैद की अवधि तो एक दिन खत्म हो जाएगी, लेकिन बच्चे के जन्म और पालन-पोषण के स्थान के बारे में पूछे जाने पर उस पर जो कलंक लगेगा, वह हमेशा बना रहेगा। इससे जीवन के प्रति बच्चे का नजरिया बदल जाएगा, समाज में बच्चे के बारे में जो धारणा बनेगी और जेल की चारदीवारी से बाहर जिस तरह से बच्चा बाहरी दुनिया को देखेगा, उस पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अदालत ने कहा कि अगर बाद में मां को आरोपों से मुक्त कर दिया जाता है या उसे बरी कर दिया जाता है, तो यह दर्दनाक होगा। एक उदार और गतिशील संविधान वाले प्रगतिशील समाज के रूप में, नवजात शिशु को कैद करना अंतत: गंभीर अन्याय को होगा।