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थानिन क्राइविचियन – फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
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थाईलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री थानिन क्राइविचियन का रविवार को 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया। क्राइविचियन 1970 के दशक में एक सख्त कम्युनिस्ट विरोधी नेता के रूप में उभरे थे। 1976 में सैन्य तख्तापलट के बाद उन्होंने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला था। हालांकि, एक साल बाद ही दूसरे तख्तापलट में उन्हें हटा दिया गया था।
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उनके परिवार ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में उनके निधन की जानकारी दी। हालांकि, निधन की वजह नहीं बताई। थानिन को 1976 में राजा भूमिबोल अदुल्यादेज ने थाईलैंड का 14वां प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। प्रधानमंत्री के पद से हटने के बाद थानिन को राजा की सलाहकार परिषद में नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने करीब चालीस वर्षों तक सेवा दी।
प्रधानमंत्री पैटोंगटार्न शिनावात्रा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में थानिन के निधन पर शोक जताया और एक जानी-मानी हस्ती बताया। थानिन जब प्रधानमंत्री बने थे, तब का समय थाईलैंड के लिए काफी उथल-पुथल भरा था। साल 1976 में जब थाईलैंड के पड़ोसी देशों (वियतनाम, लाओस और कंबोडिया) में कम्युनिस्ट सत्ता में आ रहे थे, तब उन्होंने कम्युनिस्टों के खिलाफ सख्त नीतियां बनाईं।
छह अक्तूबर 1976 को दक्षिणपंथ समर्थकों की भीड़ ने सुरक्षा बलों की मदद से थाईलैंड के थाममसत विश्वविद्यालय को घेर लिया, जहां तानाशाही के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा था। फिर इस भीड़ ने विश्वविद्यालय के परिसर में गोलियां चलाईं, ग्रेनेड फेंके और छात्रों के साथ मारपीट की। आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें 46 लोग मारे गए। हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि मृतकों का आंकड़ा 100 से ज्यादा था। सेना ने इस हिंसा का उपयोग सत्ता पर कब्जा करने के लिए किया और दो दिन बात सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और राजशाही के मजबूत समर्थक थानिन को नए सैन्य शासक ने प्रदानमंत्री नियुक्त किया, यह नियुक्ति राज्य की सलाह पर की गई थी।
अमेरिकी विश्वविद्यालय की ओर से प्रकाशित ‘थाीलैंड: ए कंट्री स्टडी’ में कहा गया है, थानिन ने पहले कभी राजनीति में भाग नहीं लिया था और न ही उन्होंने कभी कैबिनेट का पद संभाला था। फिर भी उन्होंने खुद को ताकतवर साबित किया। ‘थाईलैंड: ए शॉर्ट हिस्ट्री’ किताब में इतिहासकार डेविड व्हाइठ ने टिप्पणी की, विरोधाभास यह है कि यह आदमी जो एक नागरिक और वकील था, सेना के अपने पूर्ववर्तियों से ज्यादा तानाशाह और दमनकारी साबित हुआ। उन्होंने कड़े पाबंदियां लागू कीं, श्रमिक संघों को चुप करा दिया गया, नौकरशाहों और शिक्षकों के बीच से विरोधियों को हटाया गया औ उन्हें कम्युनिस्ट विरोधी प्रशिक्षण देना पड़ा। 20 अक्टूबर 1977 को उन्हें तख्तापलट के बाद पद से हटा दिया गया।