विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का भारत में लगभग 800 अरब डॉलर का निवेश अब भी बरकरार है। हालांकि, अगर उनकी बिकवाली जारी रहती है तो यह भारतीय बाजार के लिए जोखिम का कारण बन सकता है। यूरोपीय इक्विटी रिसर्च फर्म बीएनपी परिबास एक्साने ने अपनी एक रिपोर्ट में यह बात कही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मजबूत घरेलू निवेश के कारण एफआईआई प्रवाह पर भारत की निर्भरता कम हो गई है, लेकिन विदेशी निवेशक अब भी बाजार में एक महत्वपूर्ण हिस्सा रखते हैं। उनकी लगातार बिक्री से बाजार की स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “हमारे विचार में मजबूत घरेलू प्रवाह के कारण एफआईआई प्रवाह पर भारत की निर्भरता कम हो गई है, एफआईआई का भारतीय इक्विटी में लगभग 800 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश है और उनकी उनकी निरंतर बिक्री बाजार के लिए जोखिम बनी हुई है।”
आंकड़ों के अनुसार, भारतीय इक्विटी में एफआईआई की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2014-20 की अवधि के दौरान 20 प्रतिशत के शिखर से घटकर 2024 में 16 प्रतिशत हो गई है। साथ ही, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि घरेलू म्यूचुअल फंड (MF) ने भारतीय इक्विटी में अपने निवेश को बढ़ा दिया है, यह 10 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।
हालांकि, उनकी होल्डिंग अब भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की तुलना में कम है। यह दर्शाता है कि घरेलू निवेशक बाजार में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन एफआईआई प्रभावशाली बने हुए हैं। एफआईआई के लिए प्रमुख चिंताओं में एक अमेरिका में बढ़ती बॉन्ड यील्ड है। उच्च यील्ड अमेरिकी परिसंपत्तियों को अधिक आकर्षक बनाती है, जिससे भारत जैसे उभरते बाजारों की अपील कम हो जाती है। इसके बावजूद, भारत को पिछले 10 वर्षों में से सात में शुद्ध एफआईआई प्रवाह प्राप्त हुआ है, जो किसी भी अन्य उभरते बाजार की तुलना में अधिक है।
रिपोर्ट के मुताबिक, हाल के महीनों में भारतीय इक्विटी को कई कारणों से दबाव का सामना करना पड़ा। चीन का आर्थिक प्रोत्साहन, अमेरिका में बढ़ती यील्ड और भारत में उच्च मूल्यांकन शामिल हैं। इन कारकों ने बाजार को कमजोर किया है। एफआईआई के बहिर्वाह के बावजूद, भारतीय बाजार में तेज गिरावट नहीं देखी गई है क्योंकि मजबूत घरेलू संस्थागत निवेशक (DII) प्रवाह ने बिक्री दबाव को संतुलित किया है। इससे बाजार में महत्वपूर्ण सुधारों को रोकने में मदद मिली है।
रिपोर्ट के अनुसार एक और चुनौती इक्विटी की बढ़ती आपूर्ति है। 2024 में, बाजार में शेयरों की आपूर्ति संस्थागत मांग को पार करते हुए रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है। एफआईआई की बिक्री के अलावा, आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) और ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) के माध्यम से प्रमोटर की बिक्री ने भी अतिरिक्त आपूर्ति में इजाफा किया है। रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि लगातार बढ़ती आपूर्ति भारतीय इक्विटी के लिए नकारात्मक हो सकती है, क्योंकि अधिकांश घरेलू प्रवाह इस आपूर्ति का मुकाबला करने में अवशोषित हो जाएगा। यह निकट भविष्य में शेयर बाजार के मूल्यांकन को भी सीमित कर सकता है।