हींग की खेती
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हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र भरमौर और पांगी के खेत हींग की खुशबू से महक रहे हैं। तीन साल पहले लगाई हींग की फसल अब तैयार होने वाली है। ऐसे में हींग की खेती से किसानों की जेबें भरने वाली हैं। जनजातीय क्षेत्र के किसान पिछले तीन साल से हींग की खेती कर रहे हैं। हींग का पौधा चौथे वर्ष में रस छोड़ना शुरू करता है। इसी रस से हींग तैयार होती है। ऐसे में अगले साल किसानों को मेहनत का फल मिलने वाला है। किसानों का कहना है कि उन्होंने हींग के पौधों बच्चों की तरह सींचा है। जिला चंबा में मौजूदा समय में पांगी, भरमौर और मैहला के किसान हींग की खेती कर रहे है। कृषि विभाग ने किसानों को हींग के सात हजार पौधे वितरित किए हैं।
हींग की कीमत ज्यादा होने के कारण किसानों का इस ओर रुझान बढ़ रहा है। वहीं कृषि विभाग भी हींग की खेती को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।
हींग की कीमत 30 से 40 हजार रुपये किलो है। भारत में इस्तेमाल के लिए हींग ईरान और अफगानिस्तान आदि देशों से आयात की जाती है। अफगानिस्तान से आने वाली हींग की मांग सबसे ज्यादा है। हींग के पौधे की जड़ से निकाले गए रस से ही हींग तैयार की जाती है। यह चार साल बाद तैयार होती है। पांगी और भरमौर के किसान तीन साल से इसकी खेती कर रहे हैं। अगले साल इसकी जड़ से रस निकाला जाएगा। इससे हींग तैयार होगी।