अजरबैजान की राजधानी बाकू में कॉप 29 के लिए लोगो
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अजरबैजान की राजधानी में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन कॉप-29 के खत्म होने से पहले ही असहमतियों के के बादल मंडराने लगे हैं। विकासशील देशों के लिए नए जलवायु वित्त पैकेज पर बृहस्पतिवार सुबह जारी किए गए मसौदा प्रस्ताव को सम्मेलन में शामिल दस्तखत करने वाले सभी देशों ने खारिज कर दिया है। कॉप-29 की अध्यक्षता ने स्वीकार किया कि मसौदा अधूरा है और देशों से समझौता प्रस्ताव पेश करने का आग्रह किया। रात तक एक संशोधित मसौदा आने की उम्मीद है, ताकि सहमति बनाने की कोशिश की जा सके।
कोलंबिया की पर्यावरण मंत्री सुजाना मुहम्मद ने अब तक की बातचीत को खाली वादे करार दिया उन्होंने आरोप लगाया कि परेशानी यह नहीं है कि विकसित देशों के पास पैसे की कमी है, परेशानी यह है कि अमीर देश ठोस कार्रवाई की जगह भू राजनीति का खेल खेलने पर आमादा है। सुजाना के भाषण को वहां मौजूद प्रतिभागियों ने जमकर सराहा।
जी-77 130 से अधिक विकासशील देशों का समूह है और वार्ता में यह सबसे बड़ा समूह है। इस समूह ने साफतौर से कहा है कि सम्मेलन खत्म होने से पहले एक तय धनराशि पर फैसला होना ही चाहिए। समूह के अध्यक्ष एडोनिया अयेबारे ने जलवायु वित्त पैकेज को वैश्विक निवेश लक्ष्य में बदलने के विकसित देशों की कोशिश की खासी निंदा की। इसमें जलवायु वित्त पैकेज के लिए यह पैसा सरकारों, निजी कंपनियों और निवेशकों सहित कई स्रोतों से आएगा।
भारत सहित समान विचारधारा वाले विकासशील देशों की तरफ से बोलीविया के डिएगो पाचेको ने कहा, हम निराश हैं। उन्होंने मसौदे में किसी ठोस वित्तीय प्रतिबद्धता की कमी की आलोचना की। अफ्रीकी समूह के वार्ताकारों के अध्यक्ष अली मोहम्मद ने कहा कि वे जलवायु वित्त की मात्रा का जिक्र न किए जाने से बेहद फिक्रमंद हैं। उन्होंने धनराशि के अभाव चिंताजनक बताते हुए कहा कि यही कॉप-29 का मुख्य उद्देश्य है और इसी धनराशि के हिस्से के लिए हम यहां हैं। पाकिस्तान ने 2022 की विनाशकारी बाढ़ के बाद वित्तीय मदद की बेहद जरूरत बताते हुए कहा कि अस्पष्ट वादे काफी नहीं हैं।
पनामा के वार्ताकार जुआन कार्लोस मोंटेरे गोमेज ने कहा कि विकसित देश जलवायु वित्त में सालाना 1.3 खरब अमरीकी डॉलर देने के विकासशील देशों के प्रस्ताव को अत्यधिक और अनुचित कहते हैं। उन्होंने कहा, मैं आपको बताता हूं कि जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर 7 खरब अमरीकी डॉलर खर्च करना अति और अनुचित है, लेकिन कमजोर देशों की मदद के लिए 1.3 खरब डॉलर देना उचित है। उन्होंने कहा, विकसित देशों को हमारे जीवन के साथ खेलना बंद करना चाहिए और एक गंभीर मात्रात्मक वित्तीय प्रस्ताव पेश करना चाहिए। पनामा के वार्ताकार ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि बातचीत जारी है, लेकिन निष्पक्षता की मांग और भौगोलिक राजनीतिक वास्तविकताओं के बीच संघर्ष अनसुलझा है।
यूरोपीय संघ के जलवायु प्रमुख वोपके होकेस्ट्रा ने मसौदे को असंतुलित, अव्यवहारिक और अस्वीकार्य करार दिया है। धनी देश सार्वजनिक वित्त (सीधे अनुदान) के बजाय एक वैश्विक निवेश लक्ष्य का प्रस्ताव दे रहे हैं। इसमें सरकारों, निजी कंपनियों और निवेशकों से धन जुटाने का विचार शामिल है। वे यह भी तर्क दे रहे हैं कि चीन और खाड़ी देशों जैसे समृद्ध विकासशील देशों को भी योगदान देना चाहिए, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति 1992 के मुकाबले काफी मजबूत हो चुकी है।
विकासशील देशों का कहना है कि 2009 में वादा किए गए 100 अरब डॉलर का सालाना लक्ष्य केवल 2022 में हासिल हुआ, वह भी ज्यादातर ऋण के रूप में, जिसने उनके कर्ज को और बढ़ा दिया। वे चाहते हैं कि भविष्य की अधिकांश धनराशि सीधे अनुदान के तौर पर सार्वजनिक फंड से आए, न कि निजी स्रोतों से, जो लाभ कमाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं।