विधानसभा चुनाव 2024
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर मंथन चल रहा है, लेकिन महाराष्ट्र विकास आघाड़ी के घटक दलों के बीच चल रही खींचतान की चर्चा ज्यादा हो रही है। उद्धव ठाकरे जैसे शीर्ष नेता गठबंधन को बरकरार रखने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं, लेकिन सीटों के बंटवारे पर शुक्रवार रात तक भी बात नहीं बन पाई। राज्य की सियासत की बात करें तो यहां दो शिवसेना और दो राकांपा है। ऐसे में एनडीए और विपक्षी गठबंधन के सामने बड़ा सवाल यह भी है कि वे किस चेहरे के साथ चुनाव में उतरेंगे? इस बार ‘खबरों के खिलाड़ी’ में इन्हीं सवालों पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, अवधेश कुमार, समीर चौगांवकर, पूर्णिमा त्रिपाठी और अनुराग वर्मा मौजूद रहे।
महाराष्ट्र विकास आघाड़ी में क्या चल रहा है?
पूर्णिमा त्रिपाठी: लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस उत्साहित है। वह चाहती है कि चेहरा और सीटों का बंटवारा उसी के हिसाब से तय हो। उधर, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना इस पर राजी नहीं है। खींचतान इसी पर चल रही है। कुछ सीटों पर मामला फंसा हुआ है। इस शिवसेना की विचारधारा में कोई बदलाव नहीं आया है। वहीं, कांग्रेस की तरफ से लगातार सावरकर को लेकर बयान सामने आते हैं। इस बीच, यह देखना होगा कि सीटों का बंटवारा किस तरह होता है। नाना पटोले कह रहे हैं कि कांग्रेस की तरफ से कोई चेहरा आगे रखकर चुनाव लड़ना चाहिए। उधर, विपक्ष ने जो मुद्दे उठाए थे, महाराष्ट्र में अब वे धार खो चुके हैं। कांग्रेस के सामने यह बड़ी चुनौती है। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सोच रही थी कि वह कई राज्यों में वापसी करेगी, लेकिन उसकी उम्मीदों को हरियाणा में झटका लग गया।
क्या कांग्रेस कहीं चूक रही है?
रामकृपाल सिंह: हरियाणा में भाजपा-कांग्रेस को मिला मत प्रतिशत लगभग बराबर है। हरियाणा में परिवारवाद वाली पार्टियों को जनता ने साफ कर दिया और कांग्रेस को ही भाजपा का विकल्प माना। कांग्रेस की दिक्कत यह है कि वह यह नहीं समझ पा रही है कि वह किसी जमाने में सहयोगियों को सीटें बांटने वाली पार्टी थी, लेकिन आज वह उस भूमिका में नहीं है। आज भाजपा सहयोगियों को कुछ सीटें देने की स्थिति में है, जबकि कांग्रेस सहयोगी दलों की तरफ से दी गई सीटों पर लड़ने को मजबूर है। उत्तर प्रदेश में सपा, महाराष्ट्र में शिवसेना जितनी सीटें देना चाहे, कांग्रेस उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ सकेगी। संजय राउत कह रहे हैं कि अब वे सीधे राहुल गांधी से बात करेंगे। इससे जनता में क्या संदेश जा रहा है? भाजपा की बात करें तो हाल ही के चुनावों में उसने चेहरों पर फोकस नहीं किया। जैसे ही आप चेहरा तय करते हैं तो कई गुट आपस में टकराते हैं। चेहरा घोषित नहीं होता तो पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ती है। भाजपा का रुख साफ है कि बंटोगे तो कटोगे। इस बीच, अखिलेश यादव की नजर भिवंडी और मालेगांव पर है। ऐसे में उद्धव ठाकरे और असमंजस में दिखते हैं। उनके लिए इस गठबंधन में रहना और इससे बाहर निकलना, दोनों ही आसान नहीं है।
क्या भाजपा में मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर पेच फंसा है?
अवधेश कुमार: देवेंद्र फडणवीस के मन में जरूर यह भाव होगा कि उन्हें क्यों उपमुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, जमीनी स्थिति अलग है। भाजपा के एक नेता ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के विरोध में एक बयान दिया तो उन्हें पार्टी की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। भाजपा एकदम से नेतृत्व परिवर्तन नहीं करती। हरियाणा जैसे राज्यों में भाजपा ने बदलाव करने के लिए लंबा वक्त लिया। एनडीए में किसी भी नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा के खिलाफ बयान नहीं दिया है। उधर, महाराष्ट्र विकास आघाड़ी में 28 सीटों पर पेच फंसा बताया जा रहा है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को इसे हल करने में पांच-दस मिनट का वक्त लगेगा, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पा रहे। हाल ही में दो मुख्यमंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह हुआ। कश्मीर में इंडिया गठबंधन और हरियाणा में एनडीए के नेता हावभाव बता रहे थे कि दोनों खेमों में आत्मविश्वास का स्तर कितना है। महाराष्ट्र में तो दो-दो शिवसेना और दो-दो राकांपा है। ऐसे में मतदाताओं के सामने भी सवाल रहेगा कि असली कौन है?
महाराष्ट्र में इतना असमंजस क्यों है?
अनुराग वर्मा: अगर उद्धव ठाकरे आज खुद को बाला साहेब ठाकरे का उत्तराधिकारी मानते हैं तो क्या वे उनकी विरासत को आगे बढ़ा पा रहे हैं? असली शिवसेना में तो विचारधारा थी। उधर, कांग्रेस के अंदर ही दो कांग्रेस है। वह अंतरद्वंद्व से गुजर रही है। एक कांग्रेस राहुल गांधी की है, एक कांग्रेस पुरानी है। अगर अंतिम निर्णय राहुल गांधी को ही लेना है तो पार्टी अध्यक्ष की जरूरत क्या है? हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच मतभेद इतने लंबे चले कि असर वोटों तक आ गया। राहुल गांधी एक कमरे बैठकर दोनों से बातकर इसे सुलझा नहीं पाए। राहुल गांधी महाराष्ट्र के हालात सुलझाना नहीं चाहते। भाजपा में सीटों को लेकर इतना बड़ा बवाल कहीं नहीं दिखता क्योंकि भाजपा ने इसे मान लिया है कि केंद्र की राजनीति को हमें नियंत्रित करना है, राज्य की राजनीति वो क्षेत्रीय दलों पर छोड़ना चाहती है। महाराष्ट्र और बिहार इसके उदाहरण हैं। महाराष्ट्र में दो शिवसेना और दो राकांपा के सवाल के बीच धारणा यह है कि शरद पवार के बाद राकांपा के उत्तराधिकारी तो अजीत पवार ही हैं। वहीं, शिवसेना को लेकर यह धारणा है कि विचारधारा वाला खेमा कौन सा है? क्योंकि बाला साहेब ठाकरे कभी कांग्रेस के साथ नहीं गए।
भाजपा के सामने क्या चुनौती है?
समीर चौगांवकर: महाराष्ट्र में भाजपा अपने पैर पर खड़े होने की इच्छाशक्ति गंवा चुकी है। 2014 में वह अकेले चुनाव लड़ी और 122 सीटें जीतकर आई। यह वह समय था, जब वह महाराष्ट्र में अपने पैरों पर खड़े हो जाती। हालांकि, देवेंद्र फडणवीस ने वहां अच्छी सरकार भी चलाई। तब आरएसएस को भी लग रहा था कि केंद्र में नरेंद्र और महाराष्ट्र में देवेंद्र के नारे के साथ भाजपा स्पष्ट बहुमत हासिल कर लेगी, लेकिन भाजपा ने फिर शिवसेना के साथ गठबंधन कर लिया। 2024 में यह मजबूरी समझ नहीं आती कि वह क्यों एकनाथ शिंदे के चेहरे के साथ ही चुनाव लड़ना चाहती है?