उच्च हिमालय क्षेत्र की आसमान छूती चोटियां और ट्रैक रूट साहसिक पर्यटन के शौकीनों का बड़ा आकर्षण है। लेकिन यहां पल-पल बदलता मौसम साहसिक पर्यटन के शौकीनों की परीक्षा लेता है। सहस्त्रताल ट्रैक पर भी अचानक बदले मौसम को हादसे का कारण बताया जा रहा है, जिसके चलते नाै ट्रैकर्स की तबीयत बिगड़ने से मौत हो गई।
उत्तरकाशी राज्य के उन कुछ जनपदों में से एक है, जिस पर प्रकृति ने दिलखोलकर नेमतें बरसी हैं। ताल-बुग्याल से होकर जाने वाले ट्रैक रुटों से लेकर यहां गंगोत्री हिमालय में 40 से अधिक पर्वत चोटियां हैं। प्रति वर्ष बड़ी संख्या में यहां ट्रैकर्स और पर्वतारोही ट्रैक रुटों को नापने और पर्वत चोटियों की ऊंचाई छूने के मकसद से पहुंचते हैं। लेकिन रोमांच से भर देने वाली इस साहसिक गतिविधि में एक छोटी सी गलती कई बार जान पर बन आती है।
पूर्व में हो चुके हादसे भी इसकी तस्दीक करते हैं। जैसे कि ट्रैकिंग व पर्वतारोहण पर निकलने से पहले मौसम का पूर्वानुमान चेक करना भी बेहद जरुरी माना जाता है। कई बार अभियान के दौरान भी मौसम बदलने का खतरा रहता है।
ऐसे में चोटी आरोहण या ट्रैक के बीच होने के बावजूद भी अभियान स्थगित करना पड़ता है। सहस्त्रताल ट्रैक हादसे में भी मौसम अचानक बदलने के कारण हादसा होने की बात सामने आई है। ट्रैकिंग दल के साथ गए स्थानीय जसपाल सिंह ने बताया कि दल के 20 सदस्य सहस्त्रताल समिट कर वापसी कर रहे थे कि अचानक मौसम बदला। आंधी-तूफान के साथ ओले पड़े।
ठंड इतनी हो गई कि चार लोग पैदल नहीं चल पाए। बाद में उनकी अत्यधिक ठंड से मौत हो गई। मौसम का पूर्वानुमान देखकर दल के लोग सुरक्षित स्थान पर रुकते तो हादसा टल सकता था।
नेहरु पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य कर्नल अंशुमान भदौरिया का कहना है कि ट्रैकिंग व पर्वतारोहण अभियान के दौरान मौसम पूर्वानुमान लेना जरुरी होता है। ऊपर चढ़ते समय गर्म व उतरते समय अचानक मौसम बदल सकता है। ऐसे में पर्याप्त गर्म कपड़े रखने के साथ अचानक मौसम बदलने पर सरवाइल ट्रिक्स का ज्ञान होना बेहद जरुरी होता है।