Shyam Benegal Obituary Memories Of Movie Making Passion Parallel Cinema Legend Social Issues – Amar Ujala Hindi News Live

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Shyam Benegal Obituary Memories of movie making passion parallel cinema legend social issues

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श्याम बेनेगल के निधन से भारतीय सिनेमा में कभी न भरा जा सकने वाला शून्य पैदा हुआ
– फोटो : अमर उजाला

जाने-माने फिल्मकार व समानांतर सिनेमा के जनक माने जाने वाले श्याम बेनेगल का 90 साल की आयु में निधन हुआ। भारत में 8 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाले सिनेमा जगत के दिग्गज श्याम बेनेगल ने अंकुर, निशांत, मंथन और भूमिका और मंडी जैसी फिल्मों से सिनेमा जगत को अलग पहचान दिलाई। उनकी बेटी पिया ने बताया कि किडनी की समस्या से जूझ रहे बेनेगल ने मुंबई के अस्पताल में अंतिम सांस ली। पद्मश्री व पद्मभूषण से सम्मानित बेनेगल की टीवी शृंखला भारत एक खोज बेहद लोकप्रिय हुई थी।

5 लाख किसानों के दो-दो रुपये से बनी थी मंथन

वैश्विक स्तर पर धूम मचाने वाली फिल्म मंथन (1976) वर्गीज कुरियन के दुग्ध सहकारी आंदोलन से प्रेरित थी। इस फिल्म को बनाने के लिए पांच लाख डेयरी किसानों ने दो-दो रुपये दिए थे। जून में इस फिल्म का कान में फिर से प्रदर्शन किया गया।




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श्याम बेनेगल
– फोटो : अमर उजाला

पिता के कैमरे से पहली फिल्म शूट की…फिर सिनेमा का अद्भुत संसार रचते गए

श्याम बेनेगल ने 12 साल की उम्र में अपने फोटोग्राफर पिता श्रीधर बी. बेनेगल के कैमरे से पहली फिल्म शूट की थी। हिंदी सिनेमा में उनकी पहली फिल्म अंकुर थी। उन्होंने शबाना आजमी व स्मिता पाटिल के साथ कई यादगार फिल्में बनाईं। भारतीय फिल्मों के महान निर्देशक सत्यजीत रे उनकी प्रतिभा के कायल थे।

 


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श्याम बेनेगल
– फोटो : एक्स

आम लोगों की जिंदगी और चेहरे को पर्दे पर कविता की तरह रचा

इस दिग्गज निर्देशक और पटकथा लेखक ने अंकुर, निशांत, मंथन, भूमिका, जुनून, मंडी जैसी फिल्मों से समाज को आईना दिखाते रहे। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शुमार- पद्मश्री, पद्म भूषण के अलावा भारतीय सिनेमा का शीर्ष पुरस्कार दादा साहब फाल्के से सम्मानित बेनेगल ने जुबैदा, द मेकिंग ऑफ द महात्मा, नेताजी सुभाष चंद्र बोसः द फॉरगॉटेन हीरो, आरोहन, वेलकम टु सज्जनपुर जैसी फिल्में रचीं। फिल्मी दिग्गजों ने तो यहां तक कहा कि बेनेगल ने आम लोगों की जिंदगी और आम लोगों के चेहरे को पर्दे पर कविता की तरह रचा। उन्होंने कुल 24 फिल्में, 45 वृत्तचित्र और 1,500 एड फिल्में बनाईं।


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स्मिता पाटिल और शबाना आजमी के साथ श्याम बेनेगल
– फोटो : अमर उजाला

2018 में वी. शांताराम लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार

उनकी फिल्में प्रासंगिक सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर आधारित थी। जुनून (1979) देश के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान की उथल-पुथल भरी कहानी है। यह फिल्म एक ब्रिटिश महिला (नफीसा अली) और एक भावुक पठान (शशि कपूर) के बीच निषिद्ध प्रेम कहानी को दर्शाती है। इसे इसके दृश्यों और भावनात्मक तीव्रता के लिए सराहा जाता है। धर्मवीर भारती के उपन्यास पर आधारित सूरज का सातवां घोड़ा (1992) से अनूठी कहानी पेश की। एक कुंवारा (रंजीत कपूर) तीन अलग-अलग सामाजिक तबके की महिलाओं की कहानियां सुनाता है, जिन्होंने उसके जीवन को प्रभावित किया। प्रत्येक पात्र अलग था और समाज के विविध ताने-बाने का प्रतीक था। समानांतर सिनेमा आंदोलन के अग्रणी के रूप में पहचाने जाने वाले बेनेगल को 2018 में वी. शांताराम लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


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श्याम बेनेगल
– फोटो : अमर उजाला

राजनीतिक दबावों के खिलाफ वेश्यालय के संघर्ष

मराठी अभिनेत्री हंसा वाडकर के संस्मरणों से प्रेरित उनकी फिल्म भूमिका ने व्यक्तिगत पहचान, नारीवाद और रिश्तों के टकराव के विषयों पर गहराई से चर्चा की। मंडी (1983) वेश्यावृत्ति और राजनीति पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी पेश करती है, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक दबावों के खिलाफ वेश्यालय के संघर्ष को दर्शाया गया है। इस फिल्म को मील का पत्थर माना जाता है। कलयुग महाभारत से प्रेरित फिल्म है। इसमें एक परिवार के बीच कारोबार को लेकर होने वाली दुश्मनी को दिखाया गया है।




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